आप्युं–एवी बुद्धि जेने होय तेने कर्म उपरनो द्वेष अने वाणी उपरनो राग छूटतो नथी,
एटले परालंबन छूटतुं नथी ने स्वालंबन थतुं नथी. स्वालंबन वगर शांति के
वीतरागभाव प्रगटे नहि. जेने स्व–परना भिन्नस्वरूपनो निर्णय छे तेने परप्रत्ये इष्ट–
अनिष्टबुद्धिना रागद्वेष तो थता नथी. मारा ज्ञान–आनंद माटे मने मारा स्वरूपनुं ज
अवलंबन छे–एवी स्वाश्रयबुद्धिथी वीतरागभाव प्रगटे छे.
ना; बधा जीवो ज्ञानस्वरूप छे, परंतु दरेक जीवनुं ज्ञान जुदुं छे, आ जीवनुं ज्ञान आनी
पासे ने सामा जीवनुं ज्ञान तेनी पासे; दरेकनुं स्वरूप पोतपोतामां छे, एकजीवनुं स्वरूप
बीजा जीवमां प्रवेशी जतुं नथी के तेने कांइ आपे–ल्ये. दरेक जीव सामान्य विशेष स्वरूप
छे, तेनुं सामान्य विशेष तेनाथी ज छे, बीजो तेना सामान्यने के विशेषने कांई करतो
नथी. बे भिन्न तत्त्वोने खरेखर कारण–कार्यपणुं नथी. भिन्न तत्त्वोमां परस्पर कारण–
कार्यपणुं के कर्ताकर्मपणुं मानवुं ते विपरीत मान्यता तत्त्वनी बधी भूलनुं मूळ छे. ज्यां
एवी विपरीत मान्यता होय त्यां एक्केय तत्त्वनो साचो निर्णय थाय नहि. माटे जीव–
अजीव तत्त्वना स्वरूपनो वास्तविक भेद जाणवो ते सम्यक्मार्गनी प्रसिद्धिनुं कारण छे.
सम्यक्् मार्गनी प्रसिद्धि माटे संतोए जीव–अजीवनुं भिन्न स्वरूप जेम छे तेम
ओळखाव्युं छे, ते ओळखतां भेदज्ञान थाय छे ने सम्यक् मार्गनी प्रसिद्धि थाय छे.
अहो, सन्तोए वास्तविक स्वरूप ओळखावीने सम्यक् मार्गने प्रसिद्ध कर्यो छे...जगतने
सम्यक् मार्ग देखाडीने उपकार कर्यो छे.
पण तेमना स्वरूपने जो, तो तने बंनेनी भिन्नता स्पष्ट देखाशे. जे जीव वस्तुना
स्वरूपने नथी ओळखतो ने एकला संयोगने ज जुए छे तेने ज्ञानीना मार्गनी प्रसिद्धि
थती नथी. जुओ, सम्यक् मार्गनी प्रसिद्धिनी रीत! आ रीते जीव–अजीवना
भिन्नस्वरूपनी ओळखाणपूर्वक सम्यक् मार्गनी प्रसिद्धि करे तेने ज नवतत्त्वनुं यथार्थ
ज्ञान थाय छे; एटले पहेलां भिन्नस्वरूप बतावीने मार्गनी प्रसिद्धि करीने पछी बीजा
सात पदार्थोनुं वर्णन करशे.