अजीव ज छे. तेमां कांइ एवा प्रकार नथी के अमुक शरीर ‘अजीव’ ने अमुक शरीर
‘सजीव’. शरीर तो अजीव ज छे. ने चेतनमय तो जीव ज छे. मात्र संयोगने लीधे
शरीरने ‘सजीव शरीर’ कहेवुं ते तो कथनमात्र छे. अहीं कहे छे के जीव–पुद्गलना ते
संयोगमां पण तेमना स्वरूपमां भेद होवाथी तेओ भिन्न ज छे. कांई सिद्धमां जीव अने
शरीर जुदा, ने अत्यारे जीव अने शरीर भेगां–एम नथी. अत्यारे य जुदा छे. भाई,
उपयोगमय आत्माने अचेतन शरीर साथे एकता क्यांथी होय? अने चेतनमय–अरूपी
आत्मा ते अचेतन–रूपी वाणीने कइ रीते करे? सौनुं कार्यक्षेत्र पोताना द्रव्य–गुण–
पर्यायमां होय के बहार होय? वस्तुनुं कार्यक्षेत्र पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायमां ज होय,
बहार न होय. भाई, तुं चेतन, तारा गुण चेतन, तारी पर्यायो चेतन, तारुं कार्य
चेतन,–तेनाथी बहार नीकळीने देह–मन–वाणी वगेरे अजीवमां तारुं कार्य के तारुं
अस्तित्व नथी.–आम स्पष्ट भेदज्ञान करीने जे निजद्रव्यमां लीन थाय छे तेने ज
मोक्षमार्ग होय छे; तेने ज मार्गनी प्रसिद्धि थाय छे.
(–जीव ने अजीव) नथी. एक जीव ज बंनेना लक्षणोने जाणनार छे. बंनेना भिन्न
लक्षणोने जाणीने, बंनेनुं भेदज्ञान करीने, एक निजात्मामां लीनता करवी ते तात्पर्य छे.
पोतानी ज मानीने तेमां लीनपणे वर्ती रह्यो छे ने संसारभ्रमण करी रह्यो छे. एनाथी
छोडाववा संतोए कृपा करीने भेदज्ञानवडे सम्यक्मार्ग प्रसिद्ध कर्यो छे. अनादिथी
अज्ञानने लीधे जीवने खबर नथी के हुं कोण छुं ने मारुं स्वरूप शुं छे? ते पोताने
शरीरादिरूप माने छे, शरीरनी क्रियाओने पोतानी माने छे. तेमने जीव शुं ने अजीव शुं
तेनुं वास्तविक स्वरूप दर्शावीने मुक्तिनो मार्ग प्राप्त कराववा अर्थे जड–चेतनना भिन्न
लक्षणो