Atmadharma magazine - Ank 252
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 29

background image
आसोः २४९०ः ११ः
अचेतन परमाणु ज छे पुण्य–पापना भाव जीवनी ज पर्यायमां थता होवाथी जीव पोते
तेनो कर्ता छे, परंतु ते कांइ स्वभावभूत कार्य नथी एटले ते उपादेयरूप कार्य नथी पण
हेयरूप छे. पुद्गलमां बंधाता पुण्यपापरूप कर्म तेमां जीवना शुभ–अशुभ परिणाम
निमित्त छे. घातीकर्मोनी बधी प्रकृति पापरूप अशुभ ज छे, ने अघातीकर्मोमां केटलीक
प्रकृति शुभ–पुण्यरूप छे ने केटलीक अशुभ–पापरूप छे. जीवनो भाव निमित्त अने कर्म
बंधायुं ते नैमित्तिक,–छतां तेमने कांई काळभेद नथी, पहेलां निमित्त ने पछी नैमित्तिक
एम नथी, तेमज कोइ कोइनुं कर्ता पण नथी. जीव अने पुद्गल तो त्रिकाळी पदार्थ छे
अने बाकीना सात पदार्थो (–पुण्य–पाप वगेरे) पर्यायरूप छे, तेनी उत्पत्तिमां जीव
अने पुद्गलने निमित्त–नैमित्तिकपणुं छे. जीवना जे शुभभावथी पुण्यकर्म बंधायुं ते
भावने पण पुण्य कह्युं छे. ए ज रीते जे अशुभभावथी पापकर्म बंधायुं ते भावने पाप
कह्युं छे. त्यां जीवना परिणामरूप भाव पुण्य–पापनुं कर्तृत्व जीवने ज छे ने पुद्गलना
परिणामरूप द्रव्य पुण्य–पापनुं कर्तृत्व पुद्गलमां ज छे. बंनेना परिणाम एक साथे छे
आगळपाछळ नथी. भावपुण्य–पाप ते जीवनुं कार्य होवा छतां ते स्वभावभूत नथी,
एटले उपादेयरूप नथी.
वीतरागभाव ज कर्तव्य; ए ज शास्त्रतात्पर्य
भगवान आत्मा अरूपी छे, तेना सुख–दुःख परिणाम पण अरूपी छे. अने
पुद्गलकर्म रूपी छे, तेना निमित्ते बहारमां इष्ट अनिष्ट संयोग मळे छे. वस्तु कांइ इष्ट
अनिष्ट कल्पना करावती नथी, पण जीव पोते स्वभावथी खसीने राग–द्वेष वश
बहारमां इष्ट अनिष्टपणानी कल्पना करे छे. संतो कहे छेः भाई, बहारना पदार्थोथी तुं
दुःखी–सुखी नथी. तुं तारा रागद्वेषादि विकारी परिणामनी चीकासथी दुःखी छो. रागादि
चीकासभावनुं निमित्त पामीने जीवने एकक्षेत्रे पुद्गलकर्म बंधाय छे. जीवनो
वीतरागभाव संवर–निर्जरा मोक्षनो हेतु छे, ने जीवनो सरागभाव कर्मना आस्रव–
बंधनो हेतु छे. माटे मोक्षेच्छुए वीतरागभाव ज कर्तव्य छे. आवो वीतरागभाव ए ज
शास्त्रनुं तात्पर्य छे.
पुण्यारुंवनो हेतु–प्रशस्त राग
प्रशस्तराग पुण्यबंधनुं कारण छे; ते प्रशस्त रागमां शुं होय? के अर्हंत–सिद्ध–
साधु प्रत्ये तथा धर्मात्मा प्रत्ये के जिनवाणी प्रत्ये भक्ति होय छे. जुओ, आमां बे वात
आवी; एक तो प्रशस्त रागमां अर्हंतदेव वगेरेनी भक्ति होय छे; अने बीजुं अर्हंतदेव
वगेरेनी भक्तिनो जे प्रशस्त भाव छे ते पुण्यारुंवनो ज हेतु छे, ते कांइ मोक्षनो हेतु
नथी. मोक्षनो हेतु तो राग वगरनो शुद्धभाव ज छे.