Atmadharma magazine - Ank 252
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः १२ः आसोः २४९०
भगवान अर्हंतदेवोए आवा वीतरागी धर्म–शुक्लध्यानवडे ज समस्त घाती
कर्मोनो नाश कर्यो छे. आवा साचा देवनी भक्ति ज पुण्यारुंवना कारणमां गणी छे.
कुदेवादिना सेवनमां तो विषयकषायनुं पोषण छे, तेथी तेने तो पुण्यारुंवना कारणमां
गण्युं नथी.
पंचपरमेष्ठीनुं यथार्थ स्वरूप ओळखतां पोताना ज्ञानादिमां जे निर्मळता थाय
छे ते निर्मळता कांइ पुण्यारुंवनुं कारण नथी; पण पंचपरमेष्ठी प्रत्ये भक्ति–बहुमान–
विनय वगेरेनो शुभभाव छे ते प्रशस्तराग छे ने ते ज पुण्यारुंवनुं कारण छे. मोक्षनुं
कारण स्वालंबी भाव छे. बंधनुं कारण परालंबी भाव छे.
शुभ ने अशुभ बंने भावो परालंबी छे, पण तेमां शुभभाव प्रशस्त छे ते
पुण्यारुंवनुं कारण छे; ते प्रशस्तरागनो विषय ‘प्रशस्त’ एवा पंचपरमेष्ठी वगेरे छे.
तेमां रागनी मंदता छे. पंचपरमेष्ठी प्रशस्त छे, सुंदर छे. तेमने अनुसरवामां रसिकपणुं
होय, उत्साह होय, उमंग होय, आज्ञांकितपणुं होय–ए बधोय राग प्रशस्त छे.
संसारसंबंधी राग स्त्री–पुत्र–लक्ष्मी–शरीर वगेरे संबंधी राग ते अप्रशस्त छे.
प्रशस्तराग भक्तिप्रधान अज्ञानीने होय छे, तेमज उपरनी भूमिकामां स्थिति न होय
त्यारे ज्ञानीने पण होय छे. स्वरूपमां स्थिरता न रहे त्यारे ज्ञानीनी परिणति तीव्र
कषायोमां तो जती नथी. कुदेवादि अस्थाननो राग पण तेमने थतो नथी, तेमने
पंचपरमेष्ठी प्रत्येनी भक्ति वगेरेनो प्रशस्त राग होय छे. ते ज्ञानीनो प्रशस्तराग पण
पुण्यारुंवनुं ज कारण छे; अने ते ज वखते तेमने जे सम्यक्श्रद्धा–ज्ञानरूप अरागी भाव
वर्ते छे ते संवर–निर्जरा मोक्षनुं कारण छे.
ज्ञानीना मार्गनी प्रसिद्धि
आ प्रकारे तत्त्वोने बराबर जाणवाथी ज्ञानीना मार्गनी प्रसिद्धि थाय छे.
ज्ञानीनो मार्ग तो जगतमां प्रसिद्ध ज छे, पण आ जीव पोते ज्यारे ते मार्ग समजीने,
तत्त्व–स्वरूप समजीने पोतामां भेदज्ञान प्रगट करे त्यारे तेने ज्ञानीनो मार्ग प्रसिद्ध थयो
कहेवाय. एक रत्न पोतानी पासे ज प्रगट पडयुं होय, पण जेनी आंखो बंध छे, जे अंध
छे ने ते रत्नने देखतो नथी तेने तो ते रत्न अप्रसिद्ध ज छे, छे तो पासे ज पण ते
देखतो नथी त्यां सुधी तेने तो ते अप्रसिद्ध ज छे, आंख खोलीने जुए त्यारे ते प्रसिद्ध
थयुं कहेवाय. तेम सर्वज्ञ भगवाने कहेलां नवतत्त्वो प्रगट–प्रसिद्ध छे, पण जे जीव पोते
तेनुं यथार्थ ज्ञान न करे, ज्ञानचक्षु न खोले तेने तो ते अप्रसिद्ध छे, ज्यारे पोते
ज्ञानचक्षु खोलीने यथार्थ तत्त्वोने जाणे त्यारे भगवानना मार्गनी प्रसिद्धि थइ कहेवाय.
अजीवथी भिन्न चैतन्यतत्त्व पोताना अंतरमां ज छे, ने साततत्त्वोनुं परिणमन पण
जीवनी पोतानी पर्यायमां ज थाय छे, तेनुं स्वरूप ओळखे तो आस्रवबंध टळे, संवर
निर्जरा प्रगटे ने मोक्षनी प्रसिद्धि थाय. आ माटे तत्त्वोनुं स्वरूप बराबर जाणवुं जोइए.