Atmadharma magazine - Ank 252
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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आसोः २४९०ः २३ः
दशलक्षणी पर्युषणपर्व अने प्रचार
जैनधर्मनुं महान मांगलिक दसलक्षणी–पर्युषणपर्व उल्लासथी भारतभरमां ठेरठेर
उजवायुं. सोनगढ तरफथी केटलाक मुख्यशहेरोमां वांचनकार विद्वानभाईओ गया हता,
ने दरेक ठेकाणे हजारोनी संख्यामां मुमुक्षुभाईओए उल्लासपूर्वक भाग लीधो हतो, ने
गुरुदेवना अध्यात्मसन्देशना श्रवणथी सौए प्रसन्नता अने प्रमोद व्यक्त कर्यो हतो.
दिल्ही, कलकत्ता, इंदोर, मलकापुर, खंडवा, सहारनपुर, देहरादून, मुंबई, घाटकोपर,
विदर्भ, भोपाल, अमदावाद, बडौत, बिजोलिया, दमोह, गुना, बुलन्दशहेर, सागर,
वडनगर वगेरे अनेक स्थळेथी पोतानो प्रमोद व्यक्त करता पत्रो आव्या छे. दरेक स्थळे
मुमुक्षुमंडळ व्यवस्थित चाले छे, जिनेन्द्रपूजन, अभिषेक, शास्त्रस्वाध्याय, ज्ञानदान
वगेरे प्रवृत्ति उत्साहपूर्वक चाले छे. वडनगरमां पण आ पर्युषण दरमियान
मुमुक्षुमंडळनी स्थापना थइ छे, शेठ पुनमचंदजी शराफ तेना प्रमुख छे. घाटकोपरना
मुमुक्षुमंडळे सुगंधदशमीना दिवसे लगभग २०० माणसोसहित स्पेश्यल बसद्वारा
मुंबइ–दादरना बधा मंदिरोना दर्शन–धूपपूजन भक्तिनी धून सहित कर्या हता. दरेक
स्थळे भरचक कार्यक्रमो रहेता हता. क्यांक क्यांक तो रोज दस दस कलाकना कार्यक्रमो
रहेता. तेमज धार्मिक बालमेळानुं आयोजन त्रणवार करीने तेमां बाळकोने गमे तेवी
शैलीथी जैनबाळपोथी वगेरेद्वारा धार्मिकशिक्षण अपायुं हतुं, जेमां ३०० जेटली हाजरी
हती. अंतिमदिवसे धार्मिक संवाद वगेरे कार्यक्रम हतो. मुंबईनगरीमां अने दादर–
घाटकोपर वगेरेमां पर्युषणपर्व आनंदोल्लासथी उजवाया हता. दादरना नुतन
जिनमंदिरमां पर्युषणनो पहेलो ज प्रसंग होवाथी घणो उत्साह हतो. दसलक्षणीपर्वना
१० दिवसमां श्री वृजलाल फुलचंद भायाणीना धर्मपत्नी सौ. कमळाबेने तथा श्री
वीरचंद चतुरभाई अजमेराना धर्मपत्नी सौ. वसुमतीबेने दस–दस उपवास कर्या हता.
पर्युषण पछीना रविवारे रथयात्रा घणी भव्य हती ने भक्ति–उमंगनुं अनेरूं वातावरण
हतुं. जोरावरनगरथी पण पर्युषणपर्व उल्लासथी उजवायाना अने उल्लासभरी
रथयात्राना समाचार छे; रथयात्रामां सुरेन्द्रनगर अने वढवाणशहेरना मुमुक्षुओए
पण भाग लीधो हतो. इन्दोरनगरीनो उत्साह अनेरो हतो. शास्त्रसभा उपरांत
समूहभक्ति, समूहपूजन तेमज सामूहिक सामायिक वगेरेमां उमंगपूर्वक हजारो
जिज्ञासुओ भाग लेता. ईन्दोर जैनसमाजमां उत्साह अने तत्त्वप्रेम दिवसे दिवसे
वधतो जाय छे. सूत्रजीना अर्थ सांभळीने अहींनी जनता घणी प्रसन्न थइ हती.
सागरमां दसलक्षणीपर्व दरमियान सिद्धचक्रविधान पण थयुं हतुं, जेमां सेंकडो श्रावक–
श्राविकाओए भाग लीधो हतो.