Atmadharma magazine - Ank 252
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः २४ः आसोः २४९०
बडोतना दि. जैनसमाज तरफथी पण उत्साह भरेल समाचार आव्या छे. पर्युषणना
प्रवचनो दरमियान त्यांना समाजनी अनेक प्रकारनी भ्रांतिओनुं नीराकरण थयुं हतुं;
तथा मुमुक्षुमंडळनी स्थापना थइ हती; हंमेश पूजन–भक्ति–प्रवचन वगेरेनो दस कलाक
जेटलो भरचक कार्यक्रम रहेतो हतो. आम भारतना अनेक प्रमुख नगरोना जैनसमाजे
सोनगढथी प्रवाहित दि. जैनधर्मनो अध्यात्मसन्देश सांभळीने मुक्तकंठे प्रशंसा अने
आभार व्यक्त करेल छे; एटलुं ज नहि, आ उपरांत बीजा पण केटलाय गाम शहेरोमां
मुमुक्षु जैन समाज ए सन्देश सांभळवा खूब इन्तेजार छे अने ते माटे सोनगढनी
प्रचारकमिटि तरफथी शक्य एटलो प्रबंध थइ रह्यो छे. गुरुप्रतापे दिनेदिने वृद्धिगत थई
रहेल जैनधर्म सौनुं कल्याण करो.
कानपुर दिगंबर जैन मुमुक्षुमंडळ अने गढी पक्कांना दि. जैन समाज तरफथी
सोनगढना विद्वान भाईओना प्रवचनो सांभळीने हर्ष व्यक्त करता पत्रो आव्या छे,
तेमां सोनगढनो आभार मानतां लखे छे के आ प्रवचनो सांभळीने अत्यार सुधी
चालती अनेक प्रकारनी भ्रान्तिनुं निराकरण थयुंः पू. स्वामीजी द्वारा वर्तमानमां
धर्मप्रचारनुं जे कार्य थई रह्युं छे ते वर्णनातीत छे.
–जयजिनेन्द्र!
मम हृदये बिराजो
समभावरूप सामायिकनी भावना करनार धर्मात्मा विचारे छे केः–
यो दर्शनज्ञानसुखस्वभावः समस्त संसारविकारबाह्यः।
समाधिगम्यः परमात्मसंज्ञः स देवदेवो हृदये ममास्ताम्।।१३।।
जे दर्शन–ज्ञान अने सुखस्वभावरूप छे, समस्त संसार–विकारथी जे बाह्य छे,
अभेदरत्नत्रयरूप निर्विकल्प समाधिवडे जे गम्य छे, अने परमात्मा एवी संज्ञाथी जे
ओळखाय छे ते देवाधिदेव मारा हृदयमां स्थिर रहो.
निषूदते यो भवदुःखजालं निरीक्षते यो जगदन्तरालं।
योऽन्तर्गतो योगिनिरीक्षणीयः स देवदेवो हृदये ममास्ताम्।। १४।।
भवदुःखनी जाळनो जे विध्वंस करे छे, जे अंतरमां जगतनुं निरीक्षण करे छे, अने
जे अंतर्गत योगीओ वडे निरीक्षणीय छे ते देवाधिदेव मारा हृदयमां बिराजमान हो.
–अमितगतिस्वामी