आत्मधर्मनो चालु विभाग: लेखांक ३: विविध वचनामृतनो आ विभाग
प्रवचनोमांथी, विविध शास्त्रोमांथी तेमज रात्रिचर्चा वगेरे प्रसंगो उपरथी तैयार
करवामां आवे छे.
* त्रिकाळी तत्त्वनी शांति बहारमां शोधीने अज्ञानीओ आकुळता करे छे पण
ने अंतरनो आश्रय करे नहि तेने धर्म थाय नहीं बहारनी सामग्री स्वयमेव तेना कारणे
बहारना साधनोने कारणे राग थतो नथी. भूमिकानुसार अशुभ राग टाळीने शुभ
थाय, पण मारा रागथी हुं बहारनुं मेळवुं छुं–एवी एकत्वबुद्धि न करवी. शुभराग ते
चारित्रनो विकार छे; क्षेत्रांतर ते प्रदेशत्वनी क्रिया छे. एकने लीधे बीजानुं थतुं नथी,
ईच्छाने आधीन गमन नथी, अने शरीरनी क्रिया तो तद्न जुदी ज छे. कर्मने के शरीरने
आधीन तो आत्मा नथी ज, पण ईच्छाने आधीन पण आत्मानुं गमन नथी अने
ईच्छाने आधीन शरीरनी क्रिया नथी. बीजा तत्त्वोथी तो आत्मामां कांई थतुं नथी. ने
पोतामां पण रागने लीधे धर्म थतो नथी. अज्ञानी पोताना स्वभावने शोधतो नथी ने
बहारना पदार्थोने शोधे छे. जो स्वभावने शोधे तो निमित्त पण स्वयमेव होय ज छे,
(१०३) त्रण प्रकारना कर्म
* कर्म त्रण प्रकारना छे: १ –शुद्धकर्म; २ –विकारीकर्म; अने ३ –जडकर्म.
आत्माना रागादि रहित जाणनार स्वभावना परिणाम ते आत्मानुं शुद्ध कर्म छे.
कर्तव्य, परिणाम, पर्याय; रागादि ते परमार्थे आत्मानुं कर्म नथी, ते विकारी कर्म छे.
जडकर्मो पुद्गलमय छे, ते आत्माथी भिन्न छे; तेमां आत्मा पहोंची वळतो नथी पण
परमाणु पहोंची वळे छे, तेथी. तेनो कर्ता आत्मा नथी. रागादि विकारने पोतानुं खरूं