Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : : कारतक :
कार्य माने ते पण अज्ञान छे; विकार रहित
ज्ञानभावे परिणमे ते आत्मानुं खरूं कर्म
छे ते धर्मकार्य छे.
(१०४) धन्य वैरागी
* भोगने भोगव्या विना ज अने
स्वाभाविक विषयो प्रत्येना
त्यागपरिणामथी समस्त विषयोने जेमणे
पोतानी अनंतवारनी एंठ समान गण्या
छे, ने एने छोडीने चैतन्य तरफ वळ्‌या छे
–एवा परम पवित्र, धर्मपुरुषोने वारंवार
नमस्कार हो.
(१०प) आत्मार्थनो मार्ग
* हे जीव, जो तारे आत्मार्थ
साधवो होय तो तुं जगतनी दरकार छोडी
देजे; केम के आत्मार्थनो मार्ग जगतथी
जुदो छे. हे जीवो, आ अनंत अनंत
दुःखमय जन्म–मरणथी छूटवा माटे तमे
सत्वर जागो, परम पुरुषार्थ करीने
ज्ञानीना समागमे आत्माने ओळखो रे
ओळखो.
(१०६) गृहस्थनुं कर्तव्य
(१) श्री जिनेन्द्रदेवनी सेवा,
(२) श्री सद्गुरुओनी उपासना, (३)
श्री सत्शास्त्रोनी स्वाध्याय, (४) संयम,
(प) तप अने (६) सुपात्रदान–आ छ
कार्यो गृहस्थोए प्रतिदिन करवा योग्य छे.
* हे आंबावृक्ष! मारे तारी जेम मधुर
अने नम्रीभूत थवुं छे. मने मधुरता अने
नम्रता शीखव.
* रे कमळना फूल! मारे तारी जेम
परभावोथी अलिप्त रहेवुं छे, मने
अलिप्त रहेतां शिखव.
हे पर्वत! मारे तारी जेम निश्चल–
अडग रहेवुं छे, मने निश्चळ–अडग रहेतां
शिखव.
* रे गुलाबपुष्प! मारे तारी जेम
सुगंधी अने कोमळ बनवुं छे, मने एवो
बनतां शिखव.
* हे झीणी सोय! तारी तीणी
धारनी जेम मारे मारा ज्ञानने एवुं तीक्ष्ण
करवुं छे के ते सर्व पदार्थोना अंतरंग हार्दने
वींधी तेना स्वभावनो पार पामी जाय.
* हे तीक्ष्ण धारवाळी छीणी!
आत्मस्वभाव अने रागादि बंधभावोना
एकत्वने छेदीने भिन्नभिन्न करवा माटे
मारे तारी जेम मारी ज्ञान–प्रज्ञाछीणी
भगवतीने प्राप्त करवी छे.
(१०८) संसार अने मोक्ष...
* परमां पोतापणानी बुद्धि थवी
ते ज मिथ्यात्व अने संसार छे. अने
स्वमां ज पोतापणानी बुद्धि थवी ए ज
सम्यक्त्व छे, अने ए ज मोक्षपंथनुं मूळ
छे.
(१०९) कोई...नहीं
* मोहके बराबर कोई शत्रु नहीं है; क्रोधके
समान कोई आग नहीं है; और ज्ञान के
समान कोई सुख नहीं है; स्वानुभूतिसे
बढकर कोई धर्म नहीं है.