कार्य माने ते पण अज्ञान छे; विकार रहित
ज्ञानभावे परिणमे ते आत्मानुं खरूं कर्म
छे ते धर्मकार्य छे.
* भोगने भोगव्या विना ज अने
त्यागपरिणामथी समस्त विषयोने जेमणे
पोतानी अनंतवारनी एंठ समान गण्या
छे, ने एने छोडीने चैतन्य तरफ वळ्या छे
नमस्कार हो.
* हे जीव, जो तारे आत्मार्थ
जुदो छे. हे जीवो, आ अनंत अनंत
दुःखमय जन्म–मरणथी छूटवा माटे तमे
सत्वर जागो, परम पुरुषार्थ करीने
ज्ञानीना समागमे आत्माने ओळखो रे
ओळखो.
(१) श्री जिनेन्द्रदेवनी सेवा,
श्री सत्शास्त्रोनी स्वाध्याय, (४) संयम,
(प) तप अने (६) सुपात्रदान–आ छ
कार्यो गृहस्थोए प्रतिदिन करवा योग्य छे.
अने नम्रीभूत थवुं छे. मने मधुरता अने
नम्रता शीखव.
अलिप्त रहेतां शिखव.
शिखव.
बनतां शिखव.
करवुं छे के ते सर्व पदार्थोना अंतरंग हार्दने
वींधी तेना स्वभावनो पार पामी जाय.
एकत्वने छेदीने भिन्नभिन्न करवा माटे
मारे तारी जेम मारी ज्ञान–प्रज्ञाछीणी
भगवतीने प्राप्त करवी छे.
* परमां पोतापणानी बुद्धि थवी
स्वमां ज पोतापणानी बुद्धि थवी ए ज
सम्यक्त्व छे, अने ए ज मोक्षपंथनुं मूळ
छे.
समान कोई आग नहीं है; और ज्ञान के
समान कोई सुख नहीं है; स्वानुभूतिसे
बढकर कोई धर्म नहीं है.