Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १० : : कारतक :
केम आवे? भाई, ज्यां परद्रव्य तने तारा गुण–दोषनुं दाता नथी त्यां तेना उपर राग–
द्वेष शो? ज्ञानमांथी रागद्वेष नथी आवता, तेमज अचेतन विषयोमां पण रागद्वेष
नथी, पण अज्ञानीने जे अज्ञानभाव छे ते ज रागद्वेषनी खाण छे. अज्ञान टळ्‌युं ने
सम्यग्दर्शन प्रगट्युं त्यां ते सम्यग्द्रष्टिने रागद्वेषनो अभाव ज गण्यो छे, केमके तेनो जे
ज्ञानभाव छे तेमां रागद्वेष नथी.
जीव अने अजीव ए बे वस्तुने जो एकता होय के आधार–आधेयपणुं होय तो
तेमांथी एकनो घात थतां बीजानो पण घात थवो जोईए. जेम दीवो अने प्रकाश बंनेने
एकवस्तुपणुं छे तो तेमांथी एकनो नाश थतां बीजानो पण नाश थाय छे; परंतु जे
घडामां दीवो राख्यो होय ते घडानो नाश थतां कांई दीपकनो नाश थई जतो नथी, केमके
ते घडाने अने दीवाने एकवस्तुपणुं नथी पण भिन्नता छे. तेम आत्मा चैतन्यदीवो
अने तेना ज्ञानादि प्रकाश–ते बंनेने एकवस्तुपणुं छे. परंतु आ घट अर्थात् शरीर, अने
अंदर रहेलो ज्ञानदिवो (आत्मा) ते बंनेने एकवस्तुपणुं नथी, तेथी शरीरादि
पुद्गलनो घात थवा छतां ज्ञानादिगुणोनो घात थई जतो नथी, अने ज्ञानादिगुणो
अज्ञानीने हणाय तेथी कांई पुद्गलद्रव्यमां घात थई जतो नथी. आ रीते जीवना
ज्ञान–दर्शन–चारित्र वगेरे जेटला गुणो छे अथवा ते गुणोनी जेटली पर्यायो छे ते कोई
पण गुण के पर्याय परद्रव्यमां नथी.
प्रश्न:– रागद्वेष कोनां परिणाम छे?
उत्तर:– रागद्वेष अचेतनमां नथी. रागद्वेष तो जीवनां ज अनन्य परिणाम छे.
परंतु कया जीवना? के अज्ञानीना; अज्ञानी ज रागद्वेषभावो साथे तन्मयपणे परिणमे
छे, परंतु ज्ञानी तो पोताना गुणोने पोतामां ज देखतो थको, स्वाश्रयद्रष्टिथी ज्ञानादि
गुणोने विकसावतो जाय छे एटले तेने रागादिभावो साथे तन्मयता नथी. –गुणना
विकासथी एने तो रागद्वेषनो घात थतो जाय छे.
त्रण वात थई–
I जीवना ज्ञानादि गुणो के रागादि दोषो परद्रव्यमां जरापण नथी. –ए एक वात.
I I ज्ञानादि गुणो के रागादि दोषो जीवना अनन्य परिणाम छे; परंतु ज्ञानीने
पोताना ज्ञानादिस्वभावथी भरपूर आत्माना आश्रये दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी ज खीलवट
थती जाय छे, तेमां रागादि दोषोनो अभाव छे, माटे ज्ञानीने रागादि नथी. –ए बीजी वात.