Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : : कारतक :
ग्रहवायोग्य बधुं ग्रह्युं ने छोडवा योग्य बधुं छोडयुं. जेम खडी भींतरूप थती नथी तेम
ज्ञाताद्रव्य कांई पररूप थतुं नथी. पररूप थतुं नथी एटले परने छोडतुं पण नथी, केमके
पोतामां जे छे ज नहि तेने छोडवुं शुं?
तुं चेतयिता...ज्ञानदर्शनथी भरेलो. शुं राग तारा स्वभावमां छे?
–ना; स्वभावमां रागनो अभाव छे. तो जेनो अभाव छे तेने छोडवुं कई रीते?
ज्ञानमां तन्मयता एनुं नाम रागनो त्याग
‘रागनो त्याग कर्यो’ एटले शुं? के जेवो स्वभाव छे तेवो जाणीने तेमां ज्यां
एकाग्र थयो त्यां पर्यायमां रागनी उत्पत्ति न थई, पहेलां पर्यायमां राग हतो ने हवे ते
राग न थयो ते अपेक्षाए ‘रागनो त्याग’ कह्यो, पण ते समये राग हतो ने छोडयो–
एवो एनो अर्थ नथी. स्वभावमां तो राग हतो ज नहि. जो स्वभावमां राग होय तो
ज्ञाननी जेम राग साथे य आत्मा तन्मय थई जाय, ने राग कदी छूटी न शके; अथवा
रागने छोडतां ज्ञान पण छूटी जाय. माटे ज्ञान तो ज्ञान ज छे, ज्ञानमां राग तन्मय छे
ज नहि. ज्ञान ज्ञानमां तन्मय थईने परिणम्युं–एमां ज रागनो त्याग छे.
अबाधित नियम
जगतनो अबाधित नियम छे के कोई पण वस्तु अन्य वस्तुरूपे रूपांतर थई
जती नथी. दरेक वस्तु सदाय निजस्वरूपमां ज रहे छे, कोई वस्तु निजस्वरूप छोडती
नथी, ने परस्वरूपे थती नथी. आत्माना ज्ञानस्वरूपमां बीजुं कोई प्रवेशी जाय एम
कदी बनतुं नथी. भाई, तारा आत्मामां परद्रव्य प्रवेशी गयुं नथी ने तुं कदी पररूप थई
गयो नथी, स्व ने पर जुदा ने जुदा ज छे.
जेनो अभाव थाय ते स्वभाव नहि
सिद्धदशामां रागनो अभाव थयो छे ने! जो राग ते स्वभावमां होत तो तेनो
अभाव क््यांथी थात? स्वभावनो तो नाश थाय ज नहि. जेम ‘ज्ञान’ स्वभाव छे तो ते
ज्ञाननो कदी नाश थतो नथी, तेम राग जो स्वभाव होय तो तेनो कदी अभाव न थाय. जेनो
अभाव थाय ते स्वभाव नहि. माटे, अत्यारे पर्यायमां राग होवा छतां, स्वभावद्रष्टिथी तो
आत्मा रागना त्यागस्वरूप ज छे. एवा स्वभावनी आराधनाथी ज पर्यायमां रागनो
अभाव थाय छे. ‘रागने छोडुं’ ए पर्यायलक्षे छे, अखंडस्वभावने लक्षमां ल्यो