Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : : १प :
तो ‘राग छे ने तेने छोडुं’ एवा प्रकार तेमां नथी. ने आवा स्वभावमां एकाग्रताथी ज
पर्यायमां रागना अभावरूप परिणमन थई जाय छे. स्वभाव तो रागना अभावरूप छे
ने पर्याय तेमां वळी त्यां ते पण रागना अभावरूप थई. –आ सिवाय बीजी रीते
रागनो अभाव थाय नहि, ने बंधनथी छूटकारो थाय नहि.
ज्ञानमां बोजो नथी
अरे, तुं तारा ज्ञानस्वभावने तो जो. ज्ञानस्वभाव उपर कोईनो बोजो छे
ज नहीं. तारामां तो तारो ज्ञान–दर्शन स्वभाव छे. पोताना निजस्वभावने आत्मा
कदी छोडतो नथी, ने परभावने पोतामां कदी ग्रहतो नथी. आत्मस्वभावमां
परभावनो बोजो नथी. आवो आत्मस्वभाव स्वानुभवमां लेतां तने मोक्षमार्गनो
लाभ थशे.
स्वतंत्र परिणमनमां व्यवहारनी हद केटली?
जो के परमार्थे तो ज्ञान ते ज्ञान ज छे, ज्ञानने पर साथे संबंध नथी; ज्ञान
पोते परमां जतुं नथी ने परने पोतामां लावतुं नथी; पण ज्ञानसामर्थ्य एवुं खील्युं
छे के सामा पदार्थोने पोतामां ज्ञेय बनावे छे. पहेलां पदार्थेने रागद्वेषनुं निमित्त
बनावतो तेने बदले हवे पदार्थोने ज्ञाननुं निमित्त बनावे छे. ज्ञान ज्ञानपणे
परिणम्युं त्यां पदार्थो ज्ञेयपणे तेने निमित्त थया; ए तो ठीक, पण आ ज्ञान पण
ज्ञेयपदार्थोने निमित्त थयुं. पुद्गलादि पदार्थो ज्ञेयपणे परिणमे छे तो तेमना
पोताना स्वभावथी ज, कांई ज्ञान तेमने नथी परिणमावतुं, पण तेना ज्ञेयपणामां
आ चेतयितानुं ज्ञान निमित्त थाय छे. जुओ, आ व्यवहार! एकबीजानुं कांई करे
एवो तो व्यवहार नथी. ज्ञाता–ज्ञेयपणानो संबंध एटलो ज व्यवहार छे. ज्ञान
परने जाणे एटलो व्यवहार, पण ज्ञान परने जाणतां तेमां कांई फेरफार करी नांखे,
के पर चीज ज्ञानमां जणातां ज्ञानने कांई रागद्वेष करावी दे–एम नथी. व्यवहारमां
पण बंनेनुं स्वतंत्र परिणमन स्वीकारीने निमित्त–नैमित्तिक संबंध बताव्यो छे.
एटली ज व्यवहारनी हद छे.
विकसतुं ज्ञान परद्रव्यने रागद्वेषनुं निमित्त बनावतुं नथी
ज्ञान–दर्शन–चारित्रनी जे निर्मळ पर्याय खीली तेमां व्यवहार केवो होय ते
अहीं बतावे छे. पर साथेनो संबंध तोडी अंतर्मुख स्वभावमां तन्मयपणे
परिणमतुं ज्ञान विकल्पथी जुदुं पड्युं त्यां हवे ते विकल्प साथे तेने कर्ताकर्मपणुं तो
न रह्युं, परंतु ऊल्टुं ते विकल्प ज्ञेयपणे ज्ञानमां निमित्त थयुं. प्रतिकूळ संयोग
आवतां शुं ज्ञानमां प्रतिकूळता