Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : : कारतक :
मोक्षमार्गनी सिद्धि अभेदस्वभावना आश्रये छे; व्यवहारवडे कांई ज सिद्धि नथी.
आत्मामां कर्ता, कर्म, कारण वगेरे जे छ कारकशक्ति छे ते पण खरेखर
परथी निरपेक्ष छे. आत्मा वीतराग पर्यायरूप परिणम्यो ते मोक्षनुं निश्चय साधन
छे. अने खरेखर तो साधक अने साध्य एवा बे भेदथी आत्माने लक्षमां लेवो ते
पण व्यवहार छे. ते व्यवहारथी (भेदना विकल्पथी) शुं साध्य छे? तो कहे छे के
कांई ज साध्य नथी. भेदना विकल्पथी पार एकाकार स्वभाव जेवो छे तेवो साक्षात्
ज्ञानमां–अनुभवमां लेवो ते ज परमार्थ छे. अरे, रागने व्यवहारसाधन कहेवुं–
तेनाथी कांई प्रयोजन सधातुं नथी, माटे ते आश्रय करवा योग्य नथी. मोक्षमार्गना
साधननी भूमिका साथे जे राग होय ते तेनी मर्यादानो होय एटले अनुकूळ ज
होय, भूमिकाथी विरुद्ध राग न ज होय; आवा रागने व्यवहारसाधन कहेवाय, तो
पण ते व्यवहारना आश्रयथी कांई सिद्धि नथी. सिद्धि तो परमार्थसाधनथी ज छे.
आत्माना ज्ञाननी जेम बधी निर्मळ पर्यायोमां पण निश्चय–व्यवहारनुं ए प्रमाण
समजी लेवुं. जेटलो भेदरूप व्यवहार छे, के जेटलो पर साथे संबंध बतावे छे–ते
बधोय व्यवहार कांई प्रयोजनरूप नथी, अर्थात् तेना आश्रयथी मोक्षमार्गनी सिद्धि
थती नथी. अभेदरूप जे परमार्थस्वभाव, तेनी साथे ज निर्मळपर्यायनी अभेदता
छे, ने ते अभेदना आश्रये ज मोक्षमार्गरूप प्रयोजननी सिद्धि थाय छे.–माटे परथी
निरपेक्ष एवुं ते शुद्धतत्त्व ज अनुभवनीय छे.
महावीर का सन्देश
स्वसन्मुख बनो....
आत्मशक्तिने संभाळो......
आत्मिक वीरता प्रगट करो......
स्वाश्रयना बळथी मोक्ष प्राप्त करो.....

आ ज मार्गे अमे मोक्ष पाम्या छीए,
अने तमारे माटे पण आ ज मार्ग छे.
– आ छे भगवान महावीरनो सन्देश.