Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 24 of 45

background image
: कारतक : : २१ :
दिव्य नेत्र खूली गयां छे. ते भावश्रुतरूपी आंखो वडे सर्वे तत्त्वोने जाणीने मोक्षमार्गने
साधे छे. आ रीते साची आंख तो सम्यग्ज्ञान छे.
“ कारनो वाच्य जे शुद्धआत्मा, ते धर्मी अंतरमां अचक्षुदर्शनथी देखे छे एटले
आ बहारना चक्षुथी नहि पण अंतरना ज्ञानचक्षुथी देखे छे. अचक्षुदर्शन सामान्यपणे
बधा छद्मस्थने होय छे ते अचक्षुदर्शननी आ वात नथी, पण चक्षुईन्द्रियथी पार एवुं जे
अतीन्द्रिय भावश्रुतज्ञान तेना वडे अंतरमां आत्माने देखवो तेनुं नाम अहीं
‘अचक्षुदर्शन’ समजवुं. बहारना आ चक्षुथी आत्मा न देखाय, अंतरना
भावश्रुतचक्षुथी ज आत्मा देखाय. आवा अंर्तचक्षुथी आत्माने देखनारा धर्मात्मा ते
पात्र छे, आदरणीय छे. सम्यग्द्रष्टि पण बीजा सम्यग्द्रष्टिने अने मुनिने आहारदान
वगेरेनी भावना भावे छे; एवा धर्मात्माने भक्तिपूर्वक आहारदानादि करवुं ते ऊंचा
पुण्यबंधनुं कारण छे. अने शुद्धद्रष्टिपूर्वकनी जेटली शुद्धपरिणति छे ते संवर–निर्जरानुं
कारण छे. स्वद्रव्यना ज चिंतनथी शुद्धपरिणति थाय छे, ने परद्रव्यना चिंतनथी तो
रागादि थाय छे. माटे शुद्ध स्वद्रव्यना चिंतनमां वर्तवुं ने तेनी ज भावना करवी–एवो
उपदेश छे.
****
भाव
* हे जीव! तारे निरंजन थवुं होय तो, जिनरंजन
कर...ने जनरंजननी वृत्ति छोड.
* हे जीव! संसारभ्रमण करतां तें अनंतकाळथी घोर
दुःखो सह्यां पण जिनभावना कदी न भावी. आ
संसारदुःखोथी छूटवा हवे तो जिनभावना भाव.
* मिथ्यात्वादि भावो जीवे पूर्वे सुचिरकाळ भाव्या
छे. सम्यक्त्वादि भावो जीवे पूर्वे कदी भाव्या नथी.
* भवचक्रमां पूर्वे नहि भावेली भावनाओ हवे
हुं भावुं छुं. ते भावनाओ पूर्वे नहि भावी होवाथी हुं
भवना अभाव माटे तेमने भावुं छुं. कारण के भवनो
अभाव तो भवभ्रमणना कारणभूत भावनाओथी विरुद्ध
प्रकारनी, पूर्वे नहि भावेली एवी अपूर्व भावनाओथी
ज थाय छे.