एवुं वस्तुस्वरूप जाण के जेथी तारा जन्म–मरणनो अंत
आवे. जगतथी जुदो पडी आत्मप्रयोजन साधवामां
करवायोग्य चिदानंदप्रभु आत्मा ज छे. ज्ञानी कहे छे के
आ जगतमां कोई द्रव्य बीजा द्रव्यना परिणामने
उपजावतुं होय–एम अमने तो देखातुं नथी, केमके अमे
वस्तुस्वरूपने जोनारा छीए. एक द्रव्य बीजा द्रव्यरूप
थतुं अज्ञानीने भ्रमद्रष्टिथी ज देखाय छे,–ए कांई
वस्तुस्वरूप नथी. अरे जीव! ए भ्रमणा छोड ने
वस्तुस्वरूप जाण. जड–चेतननुं अत्यंत भिन्न
वस्तुस्वरूप प्रसिद्ध करीने आचार्यभगवंतोए जगत
तन्मयपणे न वर्ततो थको ते रागादिनो कर्ता थतो नथी. अने जेने एवुं भेदज्ञान नथी
ते अज्ञानी ज्ञान साथे रागने पण एकमेक करतो थको स्वयमेव अज्ञानभावथी
रागादिनो कर्ता थाय छे,–पण कांई परद्रव्य तेने रागादि करावतुं नथी. अहा, आवी
स्पष्ट वात करीने आचार्यदेव कहे छे के तत्त्वद्रष्टिथी जोतां, रागद्वेषने उपजावनारुं अन्य
द्रव्य जराय देखातुं नथी; परद्रव्य आत्माना भावमां कांई पण करे एम वस्तुस्वरूपमां
रागद्वेष करावनारुं माने तो मानो, परंतु वस्तुस्वरूप तो एवुं नथी. वस्तुस्वरूपमां तो
सर्व द्रव्योनी उत्पत्ति पोताना स्वरूपथी ज थती अंतरंगमां अत्यंत प्रगट प्रकाशे छे.
बहारनी द्रष्टिथी जोनारने ज कोई द्रव्यअन्य द्रव्यनुं कर्ता प्रतिभासे छे, अंतरंग द्रष्टिथी
जोनारने तो एवुं जरा पण देखातुं नथी.