Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : : २३ :
आवुं वस्तुस्वरूप आचार्यदेव गाथा ३७२मां स्पष्टपणे जाहेर करे छे–
को द्रव्य बीजा द्रव्यने उत्पाद नहि गुणनो करे,
तेथी बधांये द्रव्य निज स्वभावथी उपजे खरे.
कोई द्रव्यमां एवी योग्यता ज नथी के बीजा द्रव्यना गुणने के पर्यायने उपजावी
द्ये. सर्वे द्रव्यो पोतपोतानी पर्यायपणे पोताना स्वभावथी ज ऊपजे छे, माटे जीवने
परद्रव्य रागादिक उपजावे छे–एम शंका न करवी.
विकार वखते कर्म निमित्तपणे हो भले, पण ते कर्ममां एवी योग्यता नथी के
जीवना रागादिने उत्पन्न करे.
माटी ज्यारे घडारूपे ऊपजे छे त्यारे ते पोते पोताना माटी–स्वभावथी ज
घडानी उत्पत्ति करे छे, कुंभार गमे तेवो होशियार होय तो पण तेनामां एवी योग्यता
नथी के पोताना कोई गुण–पर्यायने माटीमां भेळवीने ते घडाने उपजावे.
घडापणे कोण ऊपज्युं? –माटी पोते.
कुंभारे तेमां शुं कर्युं? –कांई नहि.
रागपणे कोण ऊपज्युं? –जीव पोते.
जड कर्मे तेमां शुं कर्युं? –कांई नहि.
केमके कोई द्रव्य बीजा द्रव्यना कार्यने उपजावी शकतुं नथी,–एवी वस्तुस्थिति
जगतमां प्रसिद्ध छे. वस्तुस्थितिने जाणनारा एवा अमने तो ज्ञानचक्षुथी, कोई द्रव्यना
परिणाम अन्य द्रव्यना स्वभावपणे ऊपजता देखाता नथी.–तो तुं बीजी वात
क््यांथी लाव्यो?
जुओ भाई, आ काळे आयु थोडा, बुद्धि थोडी, तो तेने बीजी आडीअवळी
निष्प्रयोजन वातमां वेडफी न देतां एवुं वस्तु स्वरूप जाणवुं जरूरी छे के जेथी जन्म–
मरणनो अंत आवे. अरे, जगतना कार्यनो बोजो मारा उपर नथी, ने मारुं आत्मकार्य
जगतमां बीजा कोईने आधीन नथी. मारुं आत्मकार्य मारा हाथमां ज छे. आम
जगतथी जुदो पडी, आत्मप्रयोजनने साधवामां तारी बुद्धिने जोड. एवुं तत्त्वज्ञान कर के
जेथी भेदज्ञान प्रगटे ने भवनो अंत आवी जाय. शास्त्रो तो अगाध छे ने अत्यारे
जीवनी बुद्धि थोडी छे, तेथी भले थोडुं जणाय पण एवुं प्रयोजनभूत जाणवुं के जेथी
आत्मानुं कल्याण थाय.