Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : : २प :
द्रव्यरूपे थतुं देखाय छे; ए कांई वस्तुस्वरूप नथी पण मात्र अज्ञानीनो द्रष्टिभ्रम छे.
भाई, ए भ्रम छोडीने वस्तुस्वरूपने देख तो तने तारा शुद्धतत्त्वनी अनुभूति थशे,
अने परम अकर्तापणुं प्रगटशे.
अहो, जगतमां अनुभूति करवा योग्य चिदानंदप्रभु आत्मा ज छे. तेनी
अनुभूतिथी ज सम्यग्दर्शनादि थाय छे; तेनी अनुभूति ज मोक्षमार्ग छे. अनुभवने
मोक्षस्वरूप, चिन्तामणिरत्न कहेल छे. अनुभूतिथी बाह्य एवा जे रागादि परभावो ते
जो के जीवनी ज पर्यायमां छे पण मोक्षना हेतुभूत ते भावो नथी; तेमज ते भावोने कर्मे
पण उपजाव्या नथी. आ रीते ज्ञानभाव, विकारभाव ने जडभाव त्रणेनुं पृथक्करण
करीने वस्तुस्वरूपने जे जाणे ते ज्ञानथी अन्यभावोनो अकर्ता थईने ज्ञानभावपणे ज
ऊपजे. –आवो ज्ञानभाव ते मोक्षनुं कारण छे.
कोई कहे के कर्म रागद्वेष नथी करावतुं–एम कहीने तमे निमित्त ऊडाडो छो?
–तो ते आ वात समज्या ज नथी. भाई, कर्म निमित्त होय तेथी शुं ते जीवना
रागादि परिणामपणे उपज्युं? जीवना रागादि परिणामपणे उपज्युं कोण? जीवना
रागादि परिणामपणे जीव पोते उपज्यो के कर्म? जो जीव पोते उपज्यो तो कर्मे
तेमां शुं कर्युं? जो निमित्तभूत कर्म जीवना रागादिभावपणे ऊपजतुं होय तो तो ते
निमित्तकर्म पोते ज जीव थई गयुं, एटले ते मान्यतामां निमित्तनो लोप थयो, ने
जीव–अजीव, चेतन–जड, उपादान–निमित्त बधुंय एकमेक थई गयुं; वस्तुस्वरूप ज
कांई न रह्युं, उपादान–निमित्त कांई जुदा न रह्या. माटे एक द्रव्य अन्य द्रव्यना
परिणाममां कांई करे, तेने ऊपजावे के बगाडे–एवी मान्यता वस्तुस्वरूपथी विरुद्ध
होवाथी मिथ्या छे. एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कोई प्रकारे उत्पादक छे ज नहि,
स्वतंत्रपणे ज पोतपोताना परिणामरूपे बधांय द्रव्यो ऊपजे छे–आवुं वस्तुस्वरूप
जाणतां सम्यग्ज्ञान ने वीतरागता थाय छे. माटे आवुं वस्तुस्वरूप प्रसिद्ध थाव...ने
अज्ञाननो लोप थाव.