Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : : कारतक :
आसो मासनी
वि...वि...ध वा...न...गी
(चर्चा अने प्रवचनो उपरथी)
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* साची उदासीनता क््यारे?
जगतथी उदासीनता साची त्यारे थाय के ज्यारे आत्मस्वभावनी परमप्रीति
जागे; जेने आत्मस्वभावनी परमप्रीति जागी नथी तेने बीजे क््यांय परमां जरूर प्रीति
छे, एटले तेने जगतथी साची उदासीनता होती नथी. आ रीते सम्यज्ञान वगर साचो
वैराग्य होतो नथी.
* कां आत्मा...ने कां संसार
जीव जे कांई परिणाम करे ते कां तो आत्मा खातर होय, ने कां तो संसार
खातर होय; आत्मानुं जेने लक्ष छे, आत्माने साधवानो जेनो उद्यम छे ते तो पोताना
परिणामने आत्मामां जोडे छे; अने जेने आत्मानुं लक्ष नथी, आत्माने साधवानो उद्यम
नथी, अज्ञानना ज सेवनमां वर्ती रह्यो छे तेना तो बधाय परिणाम संसार खाते ज
छे–पछी ते अशुभ हो के शुभ. अशुभ ने शुभ ए बंनेथी पार त्रीजा परिणाम–के जे
आत्मस्वरूपने साधनारा छे–तेनी तो अज्ञानीने खबर नथी; एटले ते तो रागने ज
सेवी रह्यो छे, ने रागनुं सेवन ते तो संसारनुं कारण छे. रागथी पार आत्मस्वरूप शुं
चीज छे–तेने लक्षगत करीने तेनुं सेवन करतां आत्मस्वरूप सधाय छे.
मिथ्यात्वरूप जे महान दुःख तेनाथी छूटवा हे जीव! तुं शुद्ध सम्यक्त्वनुं निरंतर
सेवन कर. सम्यक्त्व वगर गमे तेटलुं पढेलखे तो पण मोक्षसाधन थाय नहि.
सम्यग्दर्शन जेनुं शुद्ध छे ते ज्ञान–चारित्रनी पण उग्र आराधना करीने अल्पकाळे मोक्ष
पामशे. सम्यग्दर्शन वगर गमे तेटलुं जाणपणुं के गमे तेटला क्रियाकांड होय तो पण तेने
ज्ञाननी के चारित्रनी आराधना होती नथी. आ रीते सम्यक्त्व समान परम सुखनुं
कारण जगतमां बीजुं नथी. माटे ते सम्यग्दर्शनने साथीदार बनावो....ते मोक्षनुं साचुं
साथीदार छे. भक्तिथी तेनी आराधना करो. मिथ्यात्वनो अने मिथ्यात्वपोषक जीवोनो
संग छोडो.