छे, एटले तेने जगतथी साची उदासीनता होती नथी. आ रीते सम्यज्ञान वगर साचो
वैराग्य होतो नथी.
परिणामने आत्मामां जोडे छे; अने जेने आत्मानुं लक्ष नथी, आत्माने साधवानो उद्यम
नथी, अज्ञानना ज सेवनमां वर्ती रह्यो छे तेना तो बधाय परिणाम संसार खाते ज
छे–पछी ते अशुभ हो के शुभ. अशुभ ने शुभ ए बंनेथी पार त्रीजा परिणाम–के जे
आत्मस्वरूपने साधनारा छे–तेनी तो अज्ञानीने खबर नथी; एटले ते तो रागने ज
सेवी रह्यो छे, ने रागनुं सेवन ते तो संसारनुं कारण छे. रागथी पार आत्मस्वरूप शुं
चीज छे–तेने लक्षगत करीने तेनुं सेवन करतां आत्मस्वरूप सधाय छे.
सम्यग्दर्शन जेनुं शुद्ध छे ते ज्ञान–चारित्रनी पण उग्र आराधना करीने अल्पकाळे मोक्ष
पामशे. सम्यग्दर्शन वगर गमे तेटलुं जाणपणुं के गमे तेटला क्रियाकांड होय तो पण तेने
ज्ञाननी के चारित्रनी आराधना होती नथी. आ रीते सम्यक्त्व समान परम सुखनुं
कारण जगतमां बीजुं नथी. माटे ते सम्यग्दर्शनने साथीदार बनावो....ते मोक्षनुं साचुं
साथीदार छे. भक्तिथी तेनी आराधना करो. मिथ्यात्वनो अने मिथ्यात्वपोषक जीवोनो
संग छोडो.