Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : : २७ :
* दुनियाने छोडीने...
दुनियाने साथे राखीने मोक्षमां नथी जवुं, परंतु दुनियाने छोडीने मोक्षमां जवुं
छे; माटे हे मोक्षार्थी! दुनियानी स्पृहा छोडीने आत्मलक्षे तुं मोक्षसाधन करजे. जो
दुनियानी स्पृहामां रोकाईश तो आत्मलक्ष चुकाई जशे...
* सम्यग्द्रष्टिनो योग
सम्यग्द्रष्टिनो योग ए छे के तेणे पोताना उपयोगने अंतरमां वाळीने
निजस्वरूपमां जोडयो छे. उपयोगनुं निजस्वरूपमां जोडाण–ते ज साचो योग छे.
उपयोगने जे परमां जोडे, के रागमां जोडे तेने शुद्ध योग होतो नथी. आ रीते
सम्यग्द्रष्टिने ज सम्यक्योग (उपयोगनुं साचुं जोडाण) होय छे.
* तीव्र जिज्ञासा
आत्मानी एवी तीव्र जिज्ञासा जागवी जोईए के, तीव्र तृषातूर जेम ठंडुं ने मीठुं
पाणी मळतां प्रेमथी पीने तृप्त थाय तेम, चैतन्यस्वरूपना अमृतनी प्राप्तिनो उपाय
सांभळतां ज प्रेमथी–उल्लासथी ग्रहण करीने अंतरमां डुबकी मारीने स्वानुभवजळना
अमृतपान करीने तृप्त थाय.
* स्वानुभवनो स्वाद लेवानी विधि
ज्ञानद्रष्टिथी, एटले रागथी भिन्न द्रष्टिथी, अंतरमां जोतां रागवगरना शुद्ध
चैतन्यस्वादपणे आत्मा अनुभवाय छे. शुद्ध ज्ञानवडे आवी स्वानुभूति थाय छे.
ज्ञाननो स्वाद ने रागनो स्वाद अत्यंत भिन्न छे. ज्ञानवडे ए स्वादनो भेद जाणीने,
ज्ञान पोते पोताना स्वादने वेदे–ए ज स्वानुभवनो स्वाद लेवानी विधि छे.
स्वानुभवनो ए स्वाद परम आनंदथी भरेलो, शांत आकुळता वगरनो छे. ए स्वाद
जेणे चाख्यो ते सिद्धपदनो साधक थयो, ने तेणे ज सिद्धप्रभुने साची रीते ओळखीने
पोताना अंतरमां स्थाप्या.
* धर्म अने अधर्म
बंधभाव कहो के अधर्म कहो; ने मोक्षभाव कहो के धर्म कहो. शुभ के अशुभ–जे
कोई सरागपरिणाम छे ते भावबंध छे, एटले ते धर्म नथी, ते मोक्षनुं साधन नथी.
बंधभावो मोक्षनुं साधन केम थाय? मोक्षनुं कारण तो मोह–रागद्वेष वगरना निर्मळ