Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : : कारतक :
परिणाम छे, ने ते ज धर्म छे, भाई, तारा आत्मपरिणाममां कया परिणाम ते धर्म छे
ने कया परिणाम अधर्म छे, तेने बराबर ओळख्या विना तुं धर्म केवी रीते करीश?
* निमित्तमां मुख्यने अंतरंग कह्युं, गौणने बहिरंग
जीवना योगनुं कंपन अने मोहादिरूप चीकणो भाव–ते कर्मबंधननां निमित्त
कारणो छे; पण तेमां मोहभाव ते बंधनुं मुख्य कारण छे तेथी तेने अंतरंगनिमित्त कह्युं,
अने योगनुं कंपन ते गौण होवाथी तेने बहिरंग निमित्त कह्युं. आम निमित्तमां अंतरंग
अने बहिरंग एवा प्रकार कह्या. जेम नियमसारनी प३ मी गाथामां सम्यक्त्वना
निमित्तनुं कथन करतां कह्युं छे के ज्ञानीनो आत्मा ते सम्यक्त्वनुं अंतरंग निमित्त छे
अने तेमनी वाणी ते बहिरंग निमित्त छे. ज्ञानीना अंतरंग भावनी मुख्यता बताववा
तेने अंतरंगहेतु कह्या छे. त्यां सम्यक्त्वना एटले के छूटकाराना निमित्तनी वात छे अने
अहीं (पंचास्तिकाय गा. १४८मां) कर्मबंधना निमित्तोनी वात छे, तेमां पण
नियमसार जेवी शैलीथी मोहभावने मुख्य बताववा तेने कर्मबंधनुं अंतरंग निमित्त
कह्युं छे ने योगना कंपनने मुख्य न बतावता तेने बहिरंगनिमित्त कारण कह्युं. योग तो
मात्र कर्मना प्रदेश–प्रकृतिनुं ज निमित्त छे, एटले ते गौण छे, ने कर्मनी स्थिति तथा
अनुभागनुं निमित्त मोहादिभाव छे तेथी ते मुख्यनिमित्त छे.
बे वात
* सुखी कोण
वैरागी सर्वत्र सुखी
वैरागीने क््यांय दुःख नथी.
परंतु सम्यग्ज्ञान वगर साचो वैराग्य होतो नथी.
एटले सम्यग्ज्ञान ते सुखनुं मूळ छे.
* त्रिपुटी शोभे छे
ज्ञानी अवश्य वैराग्यवंत होय छे.
वैराग्यवंतने क््यांय दुःख नथी.
माटे ज्ञानी सर्वत्र सुखी छे. आ रीते ज्ञान
वैराग्य ने सुखनी त्रिपुटी सर्वत्र शोभे छे.