Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : : ३१ :
भाई, तारुं ज्ञान एवुं अभेद छे के जड शब्दबाण एमां प्रवेशी ज न शके. शुं जड शब्दो
आत्मामां आवे छे? शुं आत्मानुं ज्ञान जड शब्दोमां जाय छे? नहि. बंनेनी अत्यंत
भिन्नता ज छे. तो पछी ज्ञानसूर्यना किरणोमां शब्दो जणाय तेथी करीने ज्ञानने शुं
मलिनता आवी गई? ज्ञानी तो जाणे छे के परज्ञेयोथी मारुं ज्ञान जुदुं ज परिणमे छे;
परज्ञेयो मारा ज्ञानमां रागद्वेष उपजावता नथी, के मारुं ज्ञान ज्ञानपणाने छोडीने परमां
रागद्वेष करतुं नथी. आवा ज्ञानमां रागद्वेषनो अभाव छे. आ रीते भेदज्ञाननी भावना
वडे ज्ञानीने उपशांतभाव थाय छे.
ज्ञाननुं कार्य तो ज्ञाता रहीने उपशमभावरूप एटले के वीतरागभावरूप रहेवानुं
छे, राग–द्वेष करवा ते कांई ज्ञाननुं कार्य नथी. अरे, तुं तारा ज्ञानने न ओळख ने
परद्रव्यने ईष्ट–अनिष्ट कल्पीने ते तरफ उपयोगने भमावतो थको रागद्वेष कर–ए तो
तारी मूढता छे. आचार्यदेव करुणाथी कहे छे के अरे, वस्तुस्वरूपनी आवी भिन्नता छतां
पण मूढबुद्धिजीवो उपशमभावने केम पामता नथी? ने परद्रव्यने ईष्ट–अनिष्ट मानीने
रागद्वेष केम करे छे? भाई, पर पदार्थो समीप हो के दूर हो, तारा ज्ञानने ते कांई करता
नथी; पछी तने आ शुं थयुं?–भिन्नताने क््यां भूली गयो? भिन्नताने भूलीने तुं
राग–द्वेष कां कर? ज्ञानने जुदुं ने जुदुं राखीने, ज्ञातापणे ज रहे. तेमां ज तने
उपशांतभावनुं आस्वादन थशे.
निंदा–प्रशंसाना शब्दोनी जेम सुंदर रूप के कदरूप ते कांई जीवना ज्ञानने
पोताना तरफ खेंचतुं नथी के तुं मारा तरफ जो...अने ते कांई जीवने राग–द्वेष नथी
करावतुं. सुंदर अप्सरा जेवुं के देव जेवुं रूप ते कांई जीवने कहेतुं नथी के तुं मारा तरफ
जोईने राग कर. ए रूप तो अचेतननुं परिणमन छे, तेमां कांई आ सारुं ने आ खराब
एवा बे भेद नथी, ए तो ज्ञानना ज्ञेय ज छे. ते ज रीते दूर्गंधथी भरेलुं अत्यंत कदरूप
शरीर होय ते कांई जीवने द्वेष करवानुं कहेतुं नथी. अरे, एनाथी तारी अत्यंत भिन्नता
छे. आवी भिन्नता जाणे तो एकत्वबुद्धिना रागद्वेषनो तो अभाव ज थई जाय. ज्ञान
परमां न जाय ने परचीज ज्ञानमां न आवे–पछी पर चीज दूर हो के नजीक तेथी शुं? ए
क््यां रागद्वेष करावे छे? ने ज्ञाननोय स्वभाव क््यां रागद्वेष करवानो छे? एटले
भेदज्ञानना बळे वीतरागता ज थवानुं रह्युं.
शब्द अने रूपनी जेम गंध–रस–स्पर्श वगेरेमां पण समजी लेवुं. ए कोई पदार्थो
तारा उपयोगने पोताना तरफ खेंचता नथी, ते कांई कर्ता थईने तने रागद्वेष करावता