Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : : कारतक :
नथी. तारा ज्ञानमां पण तेने सारूं–खराब मानीने रागद्वेष करवानो स्वभाव नथी.
आवा स्वभावमां (ज्ञानना स्वभावमां के ज्ञेयना स्वभावमां) क््यांय रागद्वेष नथी;
छतां अज्ञानीने जे रागद्वेष थाय ते तेना अज्ञानथी ज थाय छे. अहीं मिथ्यात्व
सहितना रागद्वेषनी ज गणत्री छे. मिथ्यात्व टळ्‌या पछी जे अल्प रागद्वेष छे ते तो
ज्ञानथी जुदापणे ज छे, ज्ञानी तेने ज्ञान साथे एकमेक जाणता नथी, ज्ञानथी जुदा ज
जाणे छे; एटले तेनुं ज्ञान दोषित नथी, तेनुं ज्ञान तो शुद्ध ज्ञानपणे ज वर्ते छे. आ रीते
भेदज्ञान वडे तेने वीतरागभावरूप उपशमनी प्राप्ति थाय छे.
वाह! जुओ, आ पोन्नूरतीर्थ उपरथी कुंदकुंदाचार्यदेवे आपेलो वीतरागीसन्देश!
वीतरागतामां झूलता झूलता सन्तोए अलौकिक काम कर्या छे! अने ए सन्तोनी
वीतरागी वाणी आत्मामां झीलीने ज्ञानीओए उपशमरसनुं पान कर्युं छे.
(आ लेखनो बाकीनो भाग आवता अंकमां)
उपशम रसनो स्वाद लेनारा......
उपशमरसनो स्वाद लेनारा ज्ञानीजनने वंदन...
समकित पामी स्वरूप साध्युं हो एने अभिनंदन...
अंतर्मुखी जीवन एनुं झरणां वहे आनंदनां,
वैराग्यरसनी धारा उल्लसी देखी पद चेतननां.
निधान देख्या निजआतमनां, सिद्धस्वरूपने ध्यावी,
सतत धूनथी ध्येय ज साध्युं लगनी आत्म लगावी..
उदयभावथी अळगा थईने वळग्या ज्ञानने ध्येये,
शांत शांत परिणाम प्रवाहे पहोंच्या सुखना दरिये.
जगतना रसथी स्वाद ज जुदो आनंदरस आस्वादे,
दर्शन एनां मंगलकारी मंगल भाव जगाडे.
उपशमरसनो स्वाद लेनारा ए ज्ञानीने वंदन.
उपशमरसनो स्वाद चखाडे एने हो अभिनंदन!
(सोनगढ: आसो...)