Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 36 of 45

background image
: कारतक : : ३३ :
आ ‘परमात्मप्रकाश’ जैनसमाजमां सर्वप्रिय सुगम
अध्यात्मग्रंथ छे. श्री योगीन्दुदेवे लगभग विक्रम संवत् ७००मां
तेनी रचना करी छे. कुंदकुंदस्वामीना मोक्षप्राभृतनो अने पूज्यपाद
स्वामीना समाधिशतकनो आ ग्रंथकार उपर प्रभाव छे. श्री
ब्रह्मदेवजीए लगभग १३मा सैकामां तेनी टीका रची छे. आ
उपरांत द्रव्यसंग्रहनी टीका पण तेमणे रचेली छे. हिंदी भाषांतर
लगभग २०० वर्ष पहेलां पं. दौलतरामजीए कर्युं छे. आ
परमात्मप्रकाशमां त्रण अधिकार छे: प्रथम अधिकारमां १२३ दोहा
द्वारा विविध प्रकारे परमात्मा–अंतरात्मा ने बहिरात्मानुं स्वरूप
बताव्युं छे; बीजा अधिकारमां (११४ दोहा द्वारा) मोक्षनुं अने
मोक्षमार्गनुं स्वरूप बताव्युं छे. त्यार पछी १०७ दोहानी चूलिका
द्वारा परम समाधिनुं अथवा अभेदरत्नत्रयनुं कथन छे. आ शास्त्र
उपर पू. कानजीस्वामीए आजथी १७ वर्ष पहेलां प्रवचनो कर्या
हता, जेमांथी केटलोक भाग ते वखते ‘आत्मधर्म’ मां प्रसिद्ध
थयेल छे. आ आसो वद ९ थी फरीने परमात्मप्रकाश शरू थयेल
छे. तेना प्रथम प्रवचननो थोडो नमूनो अहीं आप्यो छे.
* * * * *
देहमां रहेलो आत्मा पोते परमात्मस्वरूप छे; तेनामां परमात्मा थवानी शक्ति
छे. ते परमात्मशक्तिनो प्रकाश केम थाय एटले के परमात्मपणुं केम प्रगटे ते वात आ
शास्त्रमां बतावी छे, तेथी तेनुं नाम परमात्मप्रकाश छे. केवळज्ञान–केवळदर्शन–
अनंतसुख ने अनंतवीर्य–एवा स्वभावचतुष्टय प्रगटे ते परमात्मदशा छे ने
अंतरात्मपणुं तेनो उपाय छे. अंतरात्मा थईने परमात्मस्वरूपने ध्यावतां आत्मा पोते
परमात्मा थाय छे. आत्मामां शक्तिरूप अनंत चतुष्टय सदाय विद्यमान छे, प्रतीतमां
लईने स्वानुभवथी तेनुं वारंवार घोलन करतां आत्मा पोते ज परमात्म स्वरूपे
प्रकाशीत थईने केवळज्ञानथी झळकी ऊठे छे.