: ३४ : : कारतक :
मंगलाचरणमां टीकाकार कहे छे के–
चिदानंदैकरुपाय जिनाय परमात्मने।
परमात्म प्रकाशाय नित्यं सिद्धात्मने नमः।।
जेओ मात्र ज्ञान–आनंद स्वरूप छे, जिन छे, परमात्मा छे एवा श्री सिद्ध
भगवानने परमात्म–प्रकाशनी प्राप्ति अर्थे नमस्कार हो. सिद्ध भगवंतो
परमआत्मस्वरूपना प्रकाशक छे, अर्थात् आत्मानुं शुद्ध स्वरूप केवुं छे ते तेओ प्रसिद्ध
करे छे, सिद्ध भगवंतोने ओळखतां आत्मानुं शुद्ध स्वरूप लक्षमां आवे छे.
सिद्ध भगवंतो कई रीते सिद्ध थया?–के परमात्मस्वरूपनुं ध्यान करीने; एवा
सिद्ध भगवंतोने मंगलाचरणमां नमस्कार करे छे–
जे जाया झाणग्गियए कम्मकलंक डहेवि।
णिञ्चणिरंजण णाणमय ते परमप्य णवेवि।।१।।
ध्यानरूपी अग्निवडे कर्मकलंकने दग्ध करीने जेओ नित्य निरंजन ज्ञानमय थया
एवा परमात्माने–नमस्कार कर्या छे. आत्मा सदाय परमात्म स्वभावथी भरेलो छे तेनुं
ध्यान ते ज परमात्मा थवानो उपाय छे. सम्यग्दर्शन पण एना ध्यानथी ज प्रगटे छे.
अहा, जे परमात्मस्वरूपनी वात कहेतां–सांभळतां पण शांति थाय ते स्वरूप
प्रगटे एनी तो वात शी करवी? जेनुं स्मरण पण आनंद उपजावे तेना साक्षात्
अनुभवना आनंदनुं शुं कहेवुं? ते केम प्रगटे?–के तेना ध्यानथी ज प्रगटे.
जीवे परनो ज ख्याल कर्यो छे ने परनी ज संभाळ करी छे; पोताना स्वरूपने
ख्यालमां लीधुं नथी, स्वरूपनी संभाळ करी नथी. अनंतगुणथी भरेला निजस्वरूपने
संभाळे तो परमात्मदशा प्रगटी जाय.
आत्मा परमात्मस्वरूप छे तेनुं प्रकाशक आ शास्त्र छे; ते परमात्मस्वरूप जेमने
प्रगट्युं छे एवा शुद्धात्माने नमस्कार करीने स्वानुभूतिथी आ आत्मानुं परमात्मस्वरूप
केम प्रगटे? ते बताव्युं छे.
शुद्ध स्वरूपने पामेला सिद्ध भगवंतोनो आत्मा, आ आत्मानुं शुद्ध स्वरूप पण
प्रकाशे छे. आनंदधाम आत्मा छे एम सिद्ध भगवंतो प्रसिद्ध करे छे. तेओ तो शुद्ध