परमात्मा थयेला छे ने तेमनुं स्वरूप जोनारने पण तेओ (अरीसानी माफक)
निजस्वरूप देखाडे छे के तारो आत्मा पण आवो छे.
मारुं वलण छे, एनाथी बाह्यभावो प्रत्येथी हुं पाछो वळुं छुं ने परमात्मस्वरूप प्रत्ये
नमुं छुं, ढळुं छुं, वळुं छुं –तेमां अंतर्मुख थाउं छुं.
ते आवो
नम्यो छे–तेमां ज ढळ्यो छे.
जे जीव परमात्मस्वरूपमां उपयोगने जोडे छे ते परमात्मा थाय छे.
पोताना स्वरूपने ध्यावी ध्यावीने केवळज्ञानादि चतुष्टयरूप कार्य भगवाने कर्युं;
अने केवळज्ञानादि प्रगट्या ते ‘कार्यसमयसार’ छे. शुद्धरत्नत्रय एटले निश्चयरत्नत्रय;
तेना वडे कार्यसमयसाररूप परिणमवानुं काम भगवाने कर्युं. आम परमात्मस्वरूपने
अने तेना उपायने लक्षमां लईने मंगलाचरण कर्युं छे.
साधु ए त्रणेने नमस्कार कर्या छे. सात दोहा सुधी पंच परमगुरुने भावथी फरीफरी
वंदीने, प्रभाकर भट्ट नामनो शिष्य पूछे छे के हे स्वामी! आ संसारमां वसतां मारो
अनंतकाळ वीती गयो, पण हुं जराय सुख न पाम्यो, घणुं दुःख पाम्यो; हे प्रभो!
परमात्मस्वरूपने जाण्या वगर हुं आवा दुःखो पाम्यो; चार गतिना दुःखोथी संतप्त
एवा मने, प्रसन्न थईने, कृपा करीने चारगतिना दुःखनो नाशक एवो जे कोई
परमात्मस्वभाव, तेनो उपदेश आपो.