Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : : ३प :
परमात्मा थयेला छे ने तेमनुं स्वरूप जोनारने पण तेओ (अरीसानी माफक)
निजस्वरूप देखाडे छे के तारो आत्मा पण आवो छे.
हुं आवा सिद्धभगवंतोने नमस्कार करुं छुं, –एटले के मारो नमस्कार, मारो
विनय, मारुं बहुमान ने मारी भावना एक परमात्मस्वरूप प्रत्ये ज छे, तेना प्रत्ये ज
मारुं वलण छे, एनाथी बाह्यभावो प्रत्येथी हुं पाछो वळुं छुं ने परमात्मस्वरूप प्रत्ये
नमुं छुं, ढळुं छुं, वळुं छुं –तेमां अंतर्मुख थाउं छुं.
सिद्धभगवंतो निजस्वरूपने भाळीने तेना ध्यान वडे ज सिद्धि पाम्या, एटले
पोताना परमात्मस्वरूपनुं ध्यान ते ज सिद्धिनो उपाय छे –एम बताव्युं. सिद्धने जे नमे
ते आवो
ज सिद्धिनो उपाय माने, आथी विरुद्ध उपाय न माने. रागने मोक्षहेतु
समजीने तेमां जे उपयोगने जोडे ते सिद्धभगवानने नम्यो ज नथी, ते तो रागने ज
नम्यो छे–तेमां ज ढळ्‌यो छे.
जीवने ध्यान करतां तो आवडे छे–एटले के क््यांक तो ते पोताना उपयोगने
थंभावीने एकाग्र करे छे. जे जीव कषायमां उपयोगने थंभावे छे ते संसारमां रखडे छे;
जे जीव परमात्मस्वरूपमां उपयोगने जोडे छे ते परमात्मा थाय छे.
भगवाने शुं कार्य कर्युं?
पोताना स्वरूपने ध्यावी ध्यावीने केवळज्ञानादि चतुष्टयरूप कार्य भगवाने कर्युं;
शुद्ध रत्नत्रयरूप जे अंतरात्मदशा ते परमात्मदशाना कारणरूप ‘कारणसमयसार’ छे,
अने केवळज्ञानादि प्रगट्या ते ‘कार्यसमयसार’ छे. शुद्धरत्नत्रय एटले निश्चयरत्नत्रय;
तेना वडे कार्यसमयसाररूप परिणमवानुं काम भगवाने कर्युं. आम परमात्मस्वरूपने
अने तेना उपायने लक्षमां लईने मंगलाचरण कर्युं छे.
मंगलाचरण घणा भक्तिभावथी कर्युं छे; पहेलां पांच दोहा द्वारा त्रण काळना
सिद्धभगवंतोने नमस्कार कर्या छे; पछी जिनवर अर्हंतदेवने तेमज आचार्य उपाध्याय
साधु ए त्रणेने नमस्कार कर्या छे. सात दोहा सुधी पंच परमगुरुने भावथी फरीफरी
वंदीने, प्रभाकर भट्ट नामनो शिष्य पूछे छे के हे स्वामी! आ संसारमां वसतां मारो
अनंतकाळ वीती गयो, पण हुं जराय सुख न पाम्यो, घणुं दुःख पाम्यो; हे प्रभो!
परमात्मस्वरूपने जाण्या वगर हुं आवा दुःखो पाम्यो; चार गतिना दुःखोथी संतप्त
एवा मने, प्रसन्न थईने, कृपा करीने चारगतिना दुःखनो नाशक एवो जे कोई
परमात्मस्वभाव, तेनो उपदेश आपो.