Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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भगवान महावीर
दीपावली......मंगल दीपावली
आसो वद अमासनुं परोढियुं....
आखुंय भारत आजे अनेरा आनंदथी आ दीपोत्सव ऊजवी रह्युं छे. शेनो छे
आ मंगळ दीपोत्सव?
पावापुरीनुं पवित्रधाम हजारो दीपकोना झगमगाटथी आजे अनेरुं शोभी रह्युं
छे. वीरप्रभुना चरणसमीपे बेसीने भारतना हजारो भक्तजनो वीरप्रभुना
मोक्षगमननुं स्मरण करी रह्या छे ने ते पवित्रपदनी भावना भावी रह्या छे. अहा,
भगवान महावीर आजे संसारबंधनथी छूटीने अभूतपूर्व सिद्धपदने पाम्या, अत्यारे
तेओ सिद्धालयमां बिराजी रह्या छे. पावापुरीना जलमंदिरनी उपर–ठेठ उपर लोकाग्रे
प्रभु सिद्धपदमां बिराजी रह्या छे.
केवुं छे ए सिद्धपद? संतोना हृदयमां कोतराई गयेला ए सिद्धपदनुं वर्णन करतां
श्री कुंदकुंदस्वामी कहे छे के:–
कर्माष्टवर्जित, परम, जन्मजरामरणहीन, शुद्ध छे,
ज्ञानादि चार स्वभाव छे, अक्षय, अनाश, अछेद्य छे.
अनुपम, अतीन्द्रिय, पुण्य– पापविमुक्त अव्याबाध छे,
पुनरागमनविरहित, निरालंबन, सुनिश्चळ नित्य छे.
मात्र सिद्धदशामां ज नहि परंतु त्यार पहेलां संसार अवस्था वखते य जीवोमां
आवो स्वभाव छे–ते दर्शावतां कहे छे के–