Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : : ३७ :


मोह–राग–द्वेष ते बंधनुं कारण छे; मोहादि
वगरनी शुद्धज्ञप्तिक्रिया ते मोक्षनुं कारण छे. बंधनुं अने
बंधनां कारणोनुं, मोक्षनुं अने मोक्षना कारणोनुं यथार्थ
ज्ञान थतां सम्यग्ज्ञानना मार्गनी प्रसिद्धि थाय छे...ते
आत्मा मोक्ष तरफ जाय छे ने बंधनथी पाछो वळे छे.
आ ज्ञानस्वरूप आत्मा अनादिथी संसारमां रखडे छे, संसारमां रखडे छे एटले
के मोहादि दुःखरूप परभावमां परिणमे छे, ते परभावथी तेना ज्ञान–सुख वगेरे ढंकाई
गया छे–बंधाई गया छे ते ज बंधन छे; ते बंधनभावथी छूटकारो केम थाय ने आत्मा
पोताना स्वाभाविक ज्ञान ने सुखरूप केम परिणमे–ते वात आचार्यदेव बतावे छे.
मोह अने रागद्वेष परिणाम ते भावबंध छे. अने मोह–रागद्वेषना अभावरूप
जे अत्यंत निर्मळभाव ते परम संवर छे, अने ते ज भावमोक्ष छे. भावमां जे मोहादिनुं
बंधन हतुं ते छूटी गयुं एटले भावमोक्ष थयो; ने आवो भावमोक्ष थतां द्रव्यकर्मो पण
छूटी जाय छे, तेनुं नाम द्रव्यमोक्ष छे.
तने बंधन शेनुं? के मोह साथे मळेला तारा भावनुं; कोई बीजाए तने बांध्यो
नथी. तारी क्रियाथी ज तुं बंधाणो छो ने तारी क्रियाथी ज तुं छूटी शके छे. कई क्रिया?
जीव ज्ञानस्वरूप छे, एटले ज्ञप्ति ज तेनी क्रिया छे. ते ज्ञप्तिक्रिया ज्यारे मोह अने
रागद्वेष साथे मळीने अशुद्धभावपणे परिणमे छे त्यारे ते अशुद्धभावरूप भावबंध वडे
जीव बंधाय छे. पण ज्ञानीने भेदज्ञानना बळे ज्ञप्तिक्रियामांथी मोह–रागद्वेषनी हानि
थाय छे, एटले ज्ञप्तिक्रिया शुद्धभावपणे वर्ते छे; ते शुद्धज्ञप्तिक्रियाना बळे मोहने क्षीण
करी, अंतर्मुहूर्तमां केवळज्ञान प्रगट करे छे. आवा केवळज्ञानमां भावकर्मनो अभाव छे,
एटले ते भावमोक्षस्वरूप छे. ज्यां मोहनो नाश थयो ने ज्ञप्तिक्रिया परिपूर्ण अक्रमपणे
खीली ऊठी त्यां सर्व कर्मनो अत्यंत संवर थाय छे. आवो संवर ते मोक्षनुं कारण छे.
ज्ञानस्वरूप आत्मानी ज्ञप्तिक्रिया ज्यां सुधी क्रमे प्रवर्तती हती त्यां सुधी ते
बंधायेली हती, अनंत ज्ञेयोने एक साथे जाणी शकती न हती पण क्रमेक्रमे अमुक ज्ञेयोने
ज अटकी