Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : : कारतक :
अटकीने जाणती हती. आवी खंडखंडरूप ज्ञप्तिक्रियाने भावबंध कहेल छे.
स्वालंबनना बळे मोहनो अभाव थया पछी अंतर्मुहूर्तमां ज्ञप्तिक्रिया
केवळज्ञानकळाथी परिपूर्ण खीली ऊठे छे, पछी तेने कोई प्रतिबंध रहेतो नथी, एनुं
नाम भावमोक्ष छे.
हजी तो रागक्रिया ने ज्ञानक्रिया ए बंनेनी भिन्नतानुं भान पण जेने न
होय, अरे! जडनी क्रिया ने आत्मानी क्रिया ए बंनेनी भिन्नतानुं पण भान जेने
न होय ते तो एकला बंधभावमां ज वर्तता थका मोक्षनुं स्वरूप पण नथी जाणता,
तो पछी मोक्षनुं साधन तो क््यांथी करे? अंर्तस्वभावने अनुसरीने थती जे
ज्ञाननी क्रिया ते मोक्षनुं साधन छे. मोक्षनुं साधन कोई रागनी क्रियाने के देहनी
क्रियाने अवलंबतुं नथी. भाई, तारा ज्ञान ने आनंदना बिडायेला भावने केम
उघाडवो तेनी आ वात छे. तारा स्वभावने अनुसरवाथी ज ज्ञान–आनंद खीली
जशे...आनुं नाम भावमोक्ष. बारमा गुणस्थान सुधी ज्ञानादिमां हजी जेटलो
प्रतिबंध छे तेटलो भावबंध छे; पण त्यां मोहनो अत्यंत अभाव होवाथी शुद्ध
ज्ञप्तिक्रिया क्षणेक्षणे खीली रही छे ने अंतर्मुहूर्तमां तेनुं पूर्ण सामर्थ्य खीली जतां
तेमां कोई प्रतिबंध रहेतो नथी, एनुं नाम भावमोक्ष छे. भावमोक्ष थतां द्रव्यकर्मो
पण छूटी जाय छे, ते द्रव्यमोक्ष छे.
भाई, तारी शुद्ध ज्ञप्तिक्रिया ज तारा मोक्षनो हेतु छे. मोह–राग–द्वेषनो
अभाव थईने केवळज्ञान थयुं त्यां भावमोक्ष थयो. एवा केवळज्ञानी भगवंतो
चिदानंदना अतीन्द्रिय सुखना अनुभवथी तृप्त तृप्त वर्ते छे, तेमने कोई अतृप्ति
नथी, कोई ईच्छा नथी; आवी भावमुक्ति थई होवा छतां हजी जे पूर्वबद्ध
अघातीकर्मो बाकी छे ते पण शुद्ध स्वरूपमां अविचलित चेतनावृत्तिने लीधे क्षणेक्षणे
अत्यंतपणे निर्जरी जाय छे. साधकदशामां पण जे शुद्धचेतनावृत्ति छे ते निर्जरानुं
कारण छे. पहेलां सम्यग्दर्शन थतां अतीन्द्रिय आनंदना अंशनुं जे वदन थयुं ते
उपरथी अनुमान थई गयुं हतुं के आखो आत्मा आवा परिपूर्ण आनंदथी भरेलो
छे. केवळी अने सिद्धोनो परिपूर्ण आनंद आवो होय–तेनी पण त्यारे खबर पडी.
पछी शुद्ध चेतनावृत्ति वधतां वधतां केवळज्ञान थयुं. पछी ते शुद्ध चेतनावृत्तिथी ज
बाकीनां कर्मो निर्जरीने अत्यंत मोक्ष थाय छे. केवळीप्रभुनी चैतन्यवृत्ति
शुद्धस्वरूपमां ज स्थिर छे,–तेने कथंचित् ध्यान पण कहेवाय छे, ने ते ध्यानने
निर्जरानो हेतु कहेवामां आवे छे. मोक्षनुं अने मोक्षनां कारणोनुं, बंधनुं अने
बंधनां कारणोनुं यथार्थ ज्ञान थतां सम्यग्ज्ञानना मार्गनी प्रसिद्धि थाय छे; पछी
आत्मा मोक्षनां कारणोने सेवतो थको मोक्ष तरफ जाय छे ने बंधननां कारणोने
तोडतो बंधनथी पाछो फरे छे. (पंचास्तिकाय–प्रवचनोमांथी आसो वद ७)