Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 42 of 45

background image
(हे जीव! ज्ञानमां ठर तो ज ज्ञेयोनो पार पामीश)
घणाने प्रश्न ऊठे छे के: आकाश अनंत छे तो ते ज्ञानमां कई रीते जणाय? –काळ
अनादिअनंत छे ते ज्ञानमां कई रीते जणाय? जणाय तो तो तेनो छेडो आवी जाय!
तेनुं समाधान: प्रथम तो आकाश अने काळनी अनंतता करतांय ज्ञानसामर्थ्यनी
अनंतता वधारे छे ए वात लक्षमां लेवी जोईए.
वळी, कोई पण वस्तु ज्ञानमां प्रमेय थाय तेथी ते मर्यादित थई जाय एवो कांई
नियम नथी. ज्ञेयनी अनंतता ज्ञानमां जणाय तेथी कांई तेनी अनंतता मटीने सांत बनी
जती नथी. अमर्यादित वस्तु अमर्यादपणे रहीने पण ज्ञानमां पूरी प्रमेय थाय छे; ज्ञानमां
प्रमेय थवाथी कांई अमर्यादित वस्तु मर्यादित नथी बनी जती; –अमर्यादित ज्ञान सामर्थ्य
एना करतां पण वधु छे. ए अमर्याद ज्ञानसामर्थ्यनी दिव्यता लक्षमां आवे तो ज (अनंत
आकाश, अनादिअनंतकाळ वगेरे) अमर्यादितवस्तुनुं प्रमेयपणुं ज्ञानमां कया प्रकारे छे ते
ख्यालमां आवे. ज्यां सुधी ज्ञाननो दिव्य महिमा न भासे त्यां सुधी ए वात बेसे नहि.
आकाशनी अनंतता करतां ज्ञानसामर्थ्यनी अनंतता विशाळ छे, ए सामर्थ्यनो महिमा
भासवो जोईए.–स्वसन्मुखताथी ज ते भासे. एटले आकाशनुं प्रमेयत्व नक्की करवा
पहेलां तो आत्मा तरफ वळीने तेने प्रमेय करवो जोईए.
भाई, तने आकाशनी अनंततानो महिमा आवे छे, तो ते अनंतताने
अनंतपणे पोतामां ज्ञेयपणे समावी देनारा (जाणी लेनारा) ज्ञानसामर्थ्यनी
अनंततानो महिमा केम नथी आवतो? ज्ञानना दिव्य अपार सामर्थ्यनो तने ख्याल
नथी एटले जाणे ज्ञान करतां ज्ञेयो घणा मोटा होय ने ज्ञान नानुं होय एम तने लागे
छे, एटले ज्ञान करतां ज्ञेयोनो महिमा तने वधी जाय छे...तेथी तुं ज्ञानस्वभाव तरफ
नथी ढळतो.
जो आकाश तेना क्षेत्रसामर्थ्यथी अनंत छे तो आत्मा पोताना ज्ञानसामर्थ्यथी
अमाप छे. आकाशना अनंतक्षेत्रना अविभागप्रदेशो करतां आत्माना अनंत
ज्ञानसामर्थ्यना अविभाग अंशो अनंतगुणा छे. आकाशक्षेत्रनी अनंतता करतां
ज्ञानसामर्थ्यनी अनंतता घणी मोटी महिमावंत छे.
आकाशमां लंबावा करतां ज्ञानमां ठर... (तो ज्ञेयोनो य पार पमाशे.)
(रात्रिचर्चा उपरथी)