Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : : ३ :
ए महावीरनो जीव, मरीचीनो अवतार पूरो करीने ब्रह्मस्वर्गनो देव थयो.
त्यारबाद मनुष्य अने देवना केटलाक भवो कर्या तेमां मिथ्यामार्गनुं सेवन चालु राख्युं.
अंते मिथ्यामार्गना तीव्रसेवनना कुफळथी समस्त अधोगतिमां जन्म धारण करीकरीने,
त्रस–स्थावर पर्यायोमां असंख्यात वर्षो सुधी तीव्र दुःखो भोगव्या ए परिभ्रमण
करीकरीने ते आत्मा बहु ज थाकयो ने खेदखिन्न थयो.
अंते, असंख्य भवोमां रखडीरखडीने ते जीव राजगृहीमां एक ब्राह्मणपुत्र थयो,
ते वेदवेदांतमां पारंगत होवा छतां सम्यग्दर्शन रहित हतो तेथी तेनुं ज्ञान ने तप बधुं
व्यर्थ हतुं. मिथ्यात्वना सेवनपूर्वक त्यांथी मरीने देव थयो, ने पछी राजगृहीमां विश्वनंदी
नामनो राजपुत्र थयो अने त्यां मात्र एक उपवन माटे संसारनी मायाजाळ देखीने ते
विरक्त थयो ने संभूतस्वामी पासे जैनदीक्षा लीधी; त्यां निदानसहित मरण करी
स्वर्गमां गयो, ने त्यांथी भरतक्षेत्रना पोदनपुर नगरमां बाहुबलीस्वामीनी वंश–
परंपरामां त्रिपृष्ठ नामनो अर्धचक्री (वासुदेव) थयो; अने तीव्र आरंभ–परिग्रहना
परिणाम सहित अतृप्तपणे मरीने त्यांथी सातमी नरके गयो. अरे, ए नरकना घोर
दुःखोनी शी वात! संसारभ्रमणमां भमता जीवे अज्ञानथी कया दुःख नहि भोगव्या
होय!!!
महा कष्टे असंख्यात् वर्षनी ए घोर नरकयातनानो भोगवटो पूर्ण करीने ते
जीव गंगाकिनारे सिंहगिरि पर सिंह थयो...पाछो धगधगता अग्नि जेवी पहेली नरके
गयो...ने त्यांथी नीकळी जंबुद्वीपना हिमवन् पर्वत उपर देदीप्यमान सिंह थयो....
महावीरनो जीव आ सिंहपर्यायमां आत्मलाभ पाम्यो. कई रीते पाम्यो? ते प्रसंग
जोईए:
एकवार ते सिंह क्रूरपणे हरणने फाडी खातो हतो त्यां आकाशमार्गे जई रहेला
बे मुनिओए तेने देख्यो, ने ‘आ जीव होनहार अंतिम तीर्थंकर छे’ एवा विदेहना
तीर्थंकरना वचननुं स्मरण करीने, दयावश आकाशमार्गेथी नीचे ऊतरीने ते सिंहने
धर्मनुं संबोधन कर्युं: हे भव्य मृगराज! आ पहेलां त्रिपृष्ठ वासुदेवना भवमां तें घणा
वांछित विषयो भोगव्या ने नरकना अनेक प्रकारना घोर दुःखो पण अशरणपणे
आक्रन्द करीकरीने तें भोगव्या, त्यारे दशे दिशामां शरण माटे तें पोकार कर्यो पण क््यांय
तने शरण न मळ्‌युं. अरे! हजी पण क्रूरतापूर्वक तुं पापनुं उपार्जन करी रह्यो छे? तारा
घोर अज्ञानने लीधे हजी सुधी तें तत्त्वने न जाण्युं. माटे शांत था...