Atmadharma magazine - Ank 253
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : : कारतक :
ने आ दुष्ट परिणाम छोड. मुनिराजना मधुर वचनो सांभळतां ज सिंहने पूर्वभवोनुं
ज्ञान थयुं, अश्रुधारा टपकवा लागी...परिणाम विशुद्ध थया...त्यारे मुनिराजे जोयुं के आ
सिंहना परिणाम शांत थया छे ने ते मारा तरफ आतुरताथी देखी रह्यो छे, तेथी
अत्यारे जरूर ते सम्यक्त्व ग्रहण करशे.
–एम विचारी
मुनिराजे तेने पुरुरवा
भीलथी मांडीने तेना अनेक
भवो बतावीने कह्युं के हे
शार्दूल! हवेना दशमा भवे तुं
भरतक्षेत्रनो तीर्थंकर थशे,
एम श्रीधरतीर्थंकरना
श्रीमुखथी अमे सांभळ्‌युं छे.
माटे
हे भव्य! तुं
मिथ्यामार्गथी निवृत्त था ने
आत्महितकारी एवा
सम्यक्मार्गमां प्रवृत्त था.
महावीरनो जीव (सिंह) मुनिराजना वचनथी तरत प्रतिबोध पाम्यो; तेणे
अत्यंत भक्तिथी वारंवार मुनिओने प्रदक्षिणा दीधी ने तेमना चरणोमां नम्रीभूत थयो.
रौद्ररसने बदले तुरत ज शांतरस प्रगट कर्यो ने ते सम्यक्त्व पाम्यो...एटलुं ज नहि,
तेणे निराहारव्रत अंगीकार कर्युं. अहा, सिंहनी शूर–वीरता सफळ थई. शास्त्राकार कहे
छे के ए वखत वैराग्यथी तेणे एवुं घोर पराक्रम प्रगट कर्युं के, जो तिर्यंचगतिमां मोक्ष
होत तो जरूर ते मोक्ष पाम्यो होत! ते सिंहपर्यायमां समाधिमरण करीने सिंहकेतु
नामनो देव थयो.
त्यांथी धातकीखंडना विदेहक्षेत्रमां कनकोजवल नामनो राजपुत्र थयो; हवे धर्म
द्वारा ते जीव मोक्षनी नजीक पहोंची रह्यो हतो. त्यां वैराग्यथी संयम लई सातमा स्वर्गे
गयो. त्यांथी साकेतपुरी (अयोध्या)मां हरिसेन राजा थयो ने पछी संयमी थईने
स्वर्गमां गयो. त्यांथी धातकीखंडमां पूर्वविदेहनी पुंडरीकिणीनगरीमां प्रियमित्र नामनो
चक्रवर्ती राजा थयो; क्षेमंकर तीर्थंकर समीप दीक्षा लीधी ने सहस्रार स्वर्गमां सूर्यप्रभदेव
थयो. त्यांथी जंबुद्वीपना छत्रपुरनगरमां नंदराजा थयो, ने दीक्षा लई, उत्तम संयम
पाळी, ११ अंगनुं ज्ञान प्राप्त करी, दर्शनशुद्धि वगेरे १६ भावना वडे तीर्थंकरनामकर्म
बांध्युं ने संसारनो छेद कर्यो; उत्तम आराधना सहित अच्युतस्वर्गमां