हुं दुःखथी तरफडी रह्यो छुं, चार गतिमां क्यांय चेन नथी, स्वर्गमां य चेन नथी;
परमात्मतत्त्वमां जे सुख भर्युं छे तेनो मने अनुभव केम थाय–ए ज मारे
समजवुं छे. प्रभो, संसारमां बीजी कोई वांछा नथी; चैतन्यना सुख सिवाय
बीजुं कांई हुं चाहतो नथी. आवो अंतरनो पोकार जेने जाग्यो ते शिष्यने संतो
परमात्मतत्त्व समजावे छे ने तुरत समजी जाय छे. तेनो पोताने एम भास्युं छे
के अरे, अनंतकाळ में दुःखनो भोगवटो कर्यो, मारा आत्माना सुखना उपायने
में क्षणमात्र न सेव्यो. सुखना उपायना सेवन वगर अनंतकाळ दुःखना दरियामां
ज डूबी रह्यो, हवे आ दुःखना दरियानो किनारो आवे ने हुं आत्मिकसुख पामुं–
एवो उपाय शुं छे? ते जाणीने तेनुं ज सेवन करवानी धगश छे; एक ज धगश
छे, एक ज धून छे, ए ज जिज्ञास छे. जे परमात्मस्वभावना लाभ वगर हुं
संसारमां भम्यो अने जेनी प्राप्तिथी मारुं भ्रमण मटे–एवो परमात्मस्वभाव
मने बतावो.
बहुमानथी सांभळे छे; प्रभो! जगतमां सौथी उत्तम ने आदरणीय जे शुद्धात्मा ते केवो
छे? पोताने तेनुं भान होय तोपण भगवान पासे जईने फरीफरी आदरपूर्वक तेनुं
श्रवण करे छे. अहीं प्रभाकरभट्टे ते वात पूछी छे. जुओ तो खरा, शुद्धात्माना जिज्ञासुने
माटे उत्कृष्ट दाखलो