Atmadharma magazine - Ank 254
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 9 of 29

background image
: ६ : आत्मधर्म : मागशर :
संसारदुःखथी छूटवा अने आत्मसुखने
अनुभववा माटे तलसी रहेला
शिष्यना अंतरनो पोकार
दुःखना दरियामांथी बहार नीकळीने सुखना अनुभव माटे
तलसतो शिष्य केवो होय, तेनी जिज्ञासुता केवी होय, तेना
हृदयमांथी प्रश्न केवो ऊठे.–ए बधानुं सुंदर वर्णन अहीं
परमात्मप्रकाशनी भूमिकामां कर्युं छे. दुःखथी थाकेलो ए
शिष्य पोताना परमात्मतत्त्वने जाणवा आतुर छे. तेने
लक्षमां आव्युं छे के मारा परमात्म–स्वरूपने जाणवाथी ज
मने आनंदनो अनुभव थशे ने भवभवना मारा दुःख
मटशे. आथी ते बीजुं बधुं भूलीने परमात्मतत्त्वने जाणवा
माटे ज उद्यमी थयो छे, तेनी ज धून ने धगश छे, अने
आवा पिपासु जीवोने माटे संतोए परम आनंदनां परब
मांडयां छे.
(कारतक सुद बीजना प्रवचनमांथी)
अहीं दिवाळीनी बोणीमां प्रभाकर भट्ट एटले के जिज्ञासु शिष्य मांगे छे के, हे
उपदेश आपो. प्रभो! अनुग्रहपूर्वक एवो उपदेश आपो के मने मारा चैतन्यनुं उत्तम
सुख मळे. जेम बेसता वर्षे माणसो महा पुरुषना–धर्मात्माना आशीर्वाद ल्ये छे तेम
अहीं प्रभाकर भट्ट श्री गुरु पासे विनयथी आशीर्वाद मांगे छे के, हे स्वामी! प्रसन्न
थईने मने परम तत्त्व समजावो.....के जे परम तत्त्वने समजतां मने सुखनो अनुभव
मळे. अत्यार सुधी संसारमां रखडतां में घणां दुःखो भोगव्या, पण सुख मने क््यांय न
मळ्‌युं, किंचित् सुख हुं न पाम्यो. परमात्मतत्त्वने न जाण्युं तेथी हुं दुःखी भयो, तो हे
स्वामी! हवे कृपा करीने आप परमात्मतत्त्वनो एवो उपदेश आपो के जेने जाणीने हुं
सिद्धसुख पामुं ने आ संसारदुःख टळे.
दुःखथी छूटवा माटे हृदयनी दर्दभरी विनंति करे छे....प्रभो! मारे बीजुं कांई नथी
जोईतुं, एक चैतन्यसुखनी प्राप्ति केम थाय–ते ज बतावो. जुओ, आ प्रभाकरभट्टनो