Atmadharma magazine - Ank 254
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : आत्मधर्म : १३ :
व न वा सी अं ज ना
वन–गूफामां मुनिदर्शननो महान आनंद
संसारना घोरातिघोर दुःखप्रसंगे, ज्यारे उपर
आभ ने नीचे पाताळ जेवी परिस्थिति होय त्यारे
पण जीवने धर्म अने धर्मात्मा केवा अचिंत्य शरणरूप
थाय छे–ते सूचवतो अंजनासतिना जीवननो एक
आनंदकारी प्रसंग अहीं आप्यो छे.
*
पति पवनंजयथी तरछोडायेली सति अंजनाने ज्यारे सासु केतुमतीए कलंकिनी
समजीने कू्ररतापूर्वक राज्यमांथी काढी मुकी, अने ज्यारे पितृगृहेथी पण तेने जाकारो
मळ्‌यो, कोईए तेने शरण न आप्युं, त्यारे आखाय संसारथी उदास थयेली ते सति
पोतानी एकनी एक सखी साथे वन तरफ चाली जाय छे–के ज्यां मुनिओना वास छे.
अंजना कहे छे–हे सखी! आ संसारमां आपणुं कोई नथी; श्री देव–गुरु–धर्म ए
वाघथी भयभीत मृगलीनी जेम अंजनी पोतानी सखी साथे वनमां चाली जाय
छे. वनवासी मुनिवरोने याद करती जाय छे, ने चाली चालीने थाकी जाय छे त्यारे बेसी
जाय छे....एनुं दुःख जोईने सखी विचारे छे के हाय! पूर्वना कोई पापने लीधे, आ
राजपुत्री निर्दोष छतां महाकष्ट पामी. संसारमां कोण रक्षा करे? पतिगृहे एनो
अनादार थयो.....जे पिता तेने लाडपूर्वक खेलावता ते ज पिताद्वारा ते निरादर
पामी.....एनी माता पण एने आशरो न आपी शकी. सहोदर भाई जेवो भाई पण
आवा दुःखमां