Atmadharma magazine - Ank 254
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : आत्मधर्म : १प :
तेनी साथे ज रहे छे. भयानक वनमां भयथी अंजनी ध्रू्रजे छे; त्यारे तेना हाथ पकडीने
सखी कहे छे–अरे मारी बेन! तुं डर मा......मारी साथे चाल....सखीना खभे हाथ
टेकवीने महा महेनते शरीर थंभावती अंजनी डगला भरे छे. थोडे दूर एक गूफा
देखाणी, सखी कहे छे के त्यां सुधी चाल....पण अंजनी कहे छे: हे सखी! मारामां हवे तो
एक डगलुंय भरवानी शक्ति नथी रही....हवे तो हुं थाकी गई....सखीए अत्यंत प्रेमाळ
शब्दोथी तेने धैर्य उपजावी, नमस्कार करी वारंवार समजावी, ने तेनो हाथ पकडी
गूफाना द्वार सुधी लई गई.
अत्यंत थाकेली बंने सखीओ, वगर विचार्ये गूफामां प्रवेशतां भय थाय–एम
विचारीने थोडीवार त्यां ज बेसी गई; पछी नजर मांडीने गूफामां जोयुं....गूफानुं द्रश्य
जोतांवेंत ज बंने सखीओ आश्चर्यथी थंभी गई! –शुं जोयुं तेमणे? अहो! तेमणे जोयुं के
गूफानी अंदर एक वीतरागी मुनिराज ध्यानमां बिराजी रह्या छे. चारणऋद्धिना धारक ए
मुनिराजनुं शरीर निश्चल थंभी गयुं छे. तेमनी मुद्रा परम शांत अने समुद्र जेवी गंभीर
छे, आंखो अंतरमां ढळी गयेली छे; आत्मानुं जेवुं यथार्थ स्वरूप जिनशासनमां कह्युं छे
तेवुं ज ध्यानमां ध्यावी
रह्या छे. पर्वत जेवा
अडोल छे, आकाश जेवा
निर्मळ छे ने पवन जेवा
असंगी छे, अप्रमत्त
भावमां झूली रह्या छे
ने सिद्ध जेवा आत्मिक
आनंदने अनुभवी रह्या
छे.
गूफामां
एकाएक आवा
मुनिराजने देखतां ज
आ बंनेना आनंदनो पार न रह्यो. अहा! धन्य धन्य मुनिराज! एम कहेती हर्षपूर्वक
तेओ मुनिनी समीप गई. मुनिराजनी वीतरागमुद्रा नीहाळतां जीवननां सर्व दुःखो
भूलाई गयां. भक्तिपूर्वक त्रण प्रदक्षिणा दईने, हाथ जोडीने नमस्कार कर्यो. आवा
वनमां मुनि जेवा परम बांधव मळवाथी तेमनां नेत्रो फूली गयां, आंसु अटकी
गया...ने नजर मुनिना चरणोमां ज थंभी गई. हाथ जोडीने गदगदभावे महा विनयथी
स्तुति करवा लागी: हे भगवान्! हे कल्याणरूप! आप संसारने