संसारबंधन क्षणमात्रमां छूटी जाय छे. आत्मा सिद्धभगवान जेवा अचिंत्य सामर्थ्यथी
भरेलो छे तेने देखतां ज अनादिनी कर्मधारा तूटी जाय छे. अनंत सिद्ध परमात्माओनी
पंक्तिमां बेसाडी शकाय एवो आ आत्मा छे. आवा आत्मामां ज्यां द्रष्टि करी त्यां
अंदर पोते पूर्णानंदथी भरेलो भासे छे, ने बहारमां जाणे कांई न होय–एम शून्य भासे
छे, चैतन्यमां द्रष्टि मुकतां एक चैतन्यसमुद्रना शांतरस सिवाय बीजुं कांई देखातुं नथी.
आवा आत्माने अंतरमां देखवानी क्रिया ते ज मोटी अपूर्व क्रिया छे.
रह्यो छे, जड देहरूप कदी थयो नथी. अरे, देहमां ज रहेला आवा तारा आत्माने हे
जीव! तुं स्वसंवेदनथी केम नथी जाणतो? बहारना बीजा तो प्रपंच घणा जाणे छे तो
तारा आत्माने केम नथी जाणतो? दूरदूरनी प्रयोजन विनानी वात जाणवा दोडे छे, तो
अहीं तारामां ज रहेला तारा आत्माने जाणवामां बुद्धि जोड.–ए अत्यंत प्रयोजनरूप
छे. अरे, तुं बीजानुं तो ज्ञान कर ने तारुं नहि! ए ते ज्ञान केवुं के पोते पोताने ज न
देखे! माटे हे भाई, आत्माने जाणवामां तत्पर था.
सुखदुःख तेमां नथी, तेमां आकुळता नथी, तेमां मननोय वेपार नथी. आवा शांत