ज चारगतिना दुःखोथी छूटकारो थशे, ने एने जाणतावेंत ज पूर्वे कदी नहि अनुभवेला
एवा कोई आनंदनो अनुभव थशे.
छे, तेथी तेने ‘प्रधान’ कहीने, ज्ञानने आत्मानुं लक्षण कह्युं छे एटले आत्माने
‘ज्ञानस्वरूप’ कहीने ओळखाव्यो छे. ज्ञाननी साथे अस्तित्व, वस्तुत्व, अमूर्तत्व वगेरे
बीजा अनंत धर्मो छे. पण ते अस्तित्व वगेरे धर्मोना निरुपणथी आत्मामां परथी
भिन्न ओळखातो नथी. केमके जड अचेतन द्रव्योमां पण अस्तित्व वगेरे धर्मो रहेला
छे.
स्वसमयरूप थईने परिणम्युं त्यां तेमां सम्यक्त्व, आनंद, चारित्र, अस्तित्व, अमूर्तत्व
वगेरे बधा धर्मोनुं निर्मळ परिणमन समायेलुं छे. ज्ञान पोते पोतामां स्थिर थईने
परिणम्युं त्यां मोक्षमार्ग तेमां आवी गयो; ने चिंतानी जाळ बधी अद्रश्य थई गई.
आत्माना सर्व धर्मोमां व्यापे छे, पण आत्माथी बहार देहादिनी क्रियामां के रागमां
ज्ञान रहेतुं नथी. तेमज ज्ञानमां परभाव रहेता नथी. ज्ञान तो स्वसमय छे ने रागादि
परभाव ते तो परसमय छे. स्वसमयमां परसमय नथी ने परसमयमां स्वसमय नथी;
एटले ज्ञानमां राग नथी ने रागमां ज्ञान नथी.
शुद्ध–