आवा आत्माने प्रतीतमां–अनुभवमां लेवानी ताकात ज्ञाननी ज छे, रागमां ते
ताकात नथी. ज्यां ज्ञान शुद्धनयरूप परिणमतुं अंतरमां वळ्युं त्यां समस्त
परद्रव्योनी चिंता अलोप थई गई, विकल्पो शमी गया, ने आनंदनुं वेदन रह्युं.
आवा सामर्थ्यवाळुं ज्ञान ते आत्मानुं लक्षण, ते आत्मानो धर्म ने तेमां ज
आत्मानी प्रसिद्धि.
चैतन्यस्वभावने ज महान समजीने तेनुं ध्यान करे छे. एना ध्यान वडे ज अर्हंतपद ने
सिद्धपद प्रगटे छे.
चैतन्यनिधानने तुं भूल्यो. जगतमां साररूप तारो आत्मा छे; देहने कर्मने के विकल्पने
न देख, ए बधाने देखनारो कोण छे? तेने देख. चेतन्यमां नमी नमीने ज जीवो
परमात्मा थया छे. जगत जेने नमे एवा गणधरादि पुरुषो पण चैतन्यमां ज नम्या छे.
अने एवो चैतन्यस्वभाव तारामां छे, माटे तारामां ज तुं नम; तारा आत्माने श्रद्धा–
ज्ञानमां लईने तेने ज तुं ध्याव.–एना ध्यान वडे एक क्षणमां कर्मबंधन तूटी जशे, ने
तारुं परमात्मस्वरूप तने प्रगट देखाशे.