Atmadharma magazine - Ank 254
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : आत्मधर्म : १९ :
नय अने तेनो विषय ते बंने एकाकार थया छे तेने ज ‘शुद्धनय’ कही दीधो छे.
आवा आत्माने प्रतीतमां–अनुभवमां लेवानी ताकात ज्ञाननी ज छे, रागमां ते
ताकात नथी. ज्यां ज्ञान शुद्धनयरूप परिणमतुं अंतरमां वळ्‌युं त्यां समस्त
परद्रव्योनी चिंता अलोप थई गई, विकल्पो शमी गया, ने आनंदनुं वेदन रह्युं.
आवा सामर्थ्यवाळुं ज्ञान ते आत्मानुं लक्षण, ते आत्मानो धर्म ने तेमां ज
आत्मानी प्रसिद्धि.
प्रगट परमात्मा अने गुप्त परमात्मा
सिद्ध भगवान जेवा प्रगट परमात्मा छे तेवो ज आ आत्मा अप्रगट परमात्मा
तारामां परमात्मपणुं छे तेनी महत्ता कर ने संसारनी महत्ता ऊडाड. चैतन्यना
स्वभावथी वधु महिमावंत आ जगतमां कोई नथी. तीर्थंकरो जेवा महापुरुषो पण आ
चैतन्यस्वभावने ज महान समजीने तेनुं ध्यान करे छे. एना ध्यान वडे ज अर्हंतपद ने
सिद्धपद प्रगटे छे.
तुं तारामां ज नम
चैतन्यस्वभावमां जे वळ्‌यो तेने जगतनी कोई चिंता नथी. भाई, जगतनी
चिंतामां तुं रोकाणो ने तारी पोतानी संभाळ तें न करी. पोताना अचिंत्य
चैतन्यनिधानने तुं भूल्यो. जगतमां साररूप तारो आत्मा छे; देहने कर्मने के विकल्पने
न देख, ए बधाने देखनारो कोण छे? तेने देख. चेतन्यमां नमी नमीने ज जीवो
परमात्मा थया छे. जगत जेने नमे एवा गणधरादि पुरुषो पण चैतन्यमां ज नम्या छे.
अने एवो चैतन्यस्वभाव तारामां छे, माटे तारामां ज तुं नम; तारा आत्माने श्रद्धा–
ज्ञानमां लईने तेने ज तुं ध्याव.–एना ध्यान वडे एक क्षणमां कर्मबंधन तूटी जशे, ने
तारुं परमात्मस्वरूप तने प्रगट देखाशे.
परमात्मा तारी पासे ज छे–तेनो प्रेम कर
तारे तारुं परमात्मपद क््यांय बहार शोधवा जवुं पडे तेम नथी; ज्यां आ देह
देखाय छे त्यां ज परमात्मा वसी रह्यो छे. ज्यां ज्यां तुं जा त्यां त्यां परमात्मा तारा