धर्मी जीवने आत्मा बहु वहालो छे; स्वानुभूतिना
कार्यने ज ते पोतानुं काम समजे छे. ते जाणे छे के
पराश्रयना बीजा काममां जोडावुं ते तो संसारनुं
कारण छे; ने आत्माना अनुभवनुं आ काम तो
स्वाधीन छे ने मोक्षनुं कारण छे. अहा, ज्ञानीए
स्वानुभवमां जे चैतन्यरस पीधां छे तेनी अज्ञानीने
खबर नथी.
छे. ने समस्त कर्मफळने ज्ञानस्वभावना वेदनथी बहार जाणीने छोडे छे.
बीजा काममां जोडावुं ते तो संसारनुं कारण छे, ने आत्माना अनुभवनुं आ काम तो
स्वाधीन छे ने मोक्षनुं कारण छे.
वहालुं नथी, आम धर्मी जीवने आत्मा बहु वहालो छे; ते धर्मप्रेमी छे, ‘आत्मप्रेमी’ छे,
जगतनो प्रेम तेने ऊडी गयो छे एटले जगतथी तो ते उदास छे.–आवी धर्मीनी दशा छे.
हुं छुं, राग के रागना फळरूप जे १४८ प्रकृति तेना फळनो भोगवटो मारी स्वानुभूतिमां
नथी; कर्म ने कर्मफळ ए बधाय मारी अनुभूतिथी बहार छे. आनंदथी भरेली,
चैतन्यरसथी उल्लसती वीतरागी स्वानुभूति ए ज मारुं काम छे.