Atmadharma magazine - Ank 254
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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मं..ग..ल..प्र..भा..त..नी...मं..ग..ल..वा..णी
* आजे मंगल प्रभातमां पंचपरमेष्ठी भगवंतोने नमस्कार.
* पंचपरमेष्ठीना आत्मामां अतीन्द्रिय आनंदनी छोळो ऊछळती होय छे.
* ए पंचपरमेष्ठिने ओळखीने नमस्कार करतां आत्माना भावमां पवित्रता थाय
छे, ते मंगळ छे.
* पंचपरमेष्ठीना प्रसादथी अमे चैतन्यसुखडी खाशुं ने भवनी भूखडी भांगशुं.–आ
बेसता वर्षना मिष्टान्न!
* अहा, चैतन्यसुखना अनुभवनी शी वात!
* समस्त कर्मो अने परभावो मारा अनुभवथी बहार छे.
* साधकने एक विकल्पथी जे पुण्य बंधाय ते पुण्य पण जगतने विस्मय उपजावे,
तो एना निर्विकल्प साधकभावना महिमानी शी वात?
* वीतरागप्रभुनो वीरमार्ग ए शूरवीरनो मार्ग छे. अहा, आवो वीतरागमार्ग
साधवो ए तो वीरनां काम छे, ए कायरनां काम नथी.
* रागना बंधनमां बंधाई रहे एने वीर केम कहेवाय? वीर तो तेने कहेवाय के जे
रागनां बंधन तोडीने मोक्षमार्गने साधे.
* अहा, साधकभावना अंशनोय एवो अचिंत्य महिमा छे के तीर्थंकरप्रकृतिनां
पुण्य पण तेने पहोंची न शके.
* तीर्थंकरप्रकृति ए तो विभावनुं फळ, ने साधकभाव ए तो स्वभावनुं फळ.–
बंनेनी जात ज जुदी.
* साधकने चैतन्यनो जे महिमा जाग्यो छे, राग तेने लूंटी शकशे नहि. चैतन्य
महिमामां आगळ वधीने ए केवळज्ञानरूप सुप्रभातने साधशे.
ए मंगळ बेसतुं वर्ष छे.
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* साधकने चैतन्य साधवा माटे जगतमां बधुंय अनुकूळ ज छे; एने कांई प्रतिकूळ
छे ज नहि. केमके एनी साधना आत्माना आधारे छे, संयोगना आधारे नथी.
* मुमुक्षु प्रतिकूळताना प्रसंगने पण धर्मभावनानी तीव्रतानुं तेमज जिनभक्ति–
आत्मसाधना वगेरेनी उत्कृष्टतानुं कारण बनावे छे.
* धर्मभावनामां ने जिनेन्द्रदेवना चरणमां जेनुं मन अचल छे एने प्रतिकूळता
शी?
* भगवान जराय दूर नथी, भगवान तो साधकना ज्ञानमां ज बिराजी रह्या छे.
* जीवननी प्रत्येक पळनां वहेण चैतन्यसाधना अर्थे ज वहो.