: २ : आत्मधर्म : मागशर :
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(एकवीसमां सैकाना एकवीसमा वर्षनुं मंगल प्रवचन)
* परमात्मप्रकाश अने समयसार *
आजे मंगल–सुप्रभात छे. अहीं मांगलिक
तरीके परमात्मप्रकाशमां पंचपरमेष्ठी भगवंतोने
नमस्कार चाले छे. जगतमां पंचपरमेष्ठी महान
मंगळ छे. अने ए पंचपरमेष्ठीने ओळखीने
नमस्कार करतां आत्माना भावमां पवित्रता थाय
छे ते पण मंगळ छे. आत्मानी ओळखाण अने
श्रद्धा करवी ते महान मंगळ छे, तेना फळमां
केवळज्ञानथी झळहळतुं पूर्ण सुप्रभात खीले छे; ने
तेना साधकरूप सम्यक्त्वादि प्रगट्या ते मंगल
सुप्रभात छे.
पंचपरमेष्ठीने आत्मामां अतीन्द्रिय आनंदनी छोळो ऊछळती होय छे;
चैतन्यस्वरूपमां मग्न थईने अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन करता होय छे. आ आत्मा एवा
ज आनंदनुं धाम छे. अहा, वीतरागमार्गना संतो सिंह जेवा होय छे....जगतनी जेने
दरकार नहि. चैतन्यसूर्यना तेजथी तपतो आत्मा, तेमां शुद्धोपयोग वडे जेओ चरे छे–
वर्ते छे–लीन थाय छे ने जगतना जीवोने तेनो उपदेश आपे छे, आवा वीतरागमार्गी
संतो केवळज्ञानना साधक छे. अहा, केवळज्ञान थतां अनंत चक्षु ऊघडी जाय छे. अढी
द्वीपमां करोडो मुनिओ बिराजे छे, लाखो केवळी अरिहंत भगवंतो अने अनंता सिद्धो
बिराजे छे,–एनुं स्वरूप लक्षमां लेतां ज्ञान निर्मळ थाय छे. तेमना जेवो शुद्ध आत्मा ज
मारे उपादेय करवा योग्य छे. मारो शुद्धात्मा ज मारे उपादेय छे ने एनाथी विरुद्ध बीजुं
बधुंय मारे हेय छे. मारी असंख्य प्रदेशी चैतन्यकाया–सदाय नीरोगी–रागना रोग
वगरनी छे. जगतना छ द्रव्योमां आत्मा सौथी महान–महिमावंत छे, आत्मामां पण
पंचपरमेष्ठी उपादेय छे. पंचपरमेष्ठीमां पण अरहंत अने सिद्ध पूर्ण परमात्मा छे, ते
उपादेय छे, तेमांय सिद्धभगवंतो संपूर्ण शुद्ध छे. अने ते सिद्ध भगवान जेवो आ