छे.–जुओ, आ बेसतावर्षमां आत्माना आनंदना भोगवटानी वात!
करे छे के मारा आनंदनो ज हुं भोक्ता छुं, चैतन्यना स्वभावथी बहारना कोई भावनो
भोगवटो मने नथी. चैतन्यने साधवानी भूमिका केवी होय ने ए भूमिकाना पुण्य केवा
होय –ते वात साधारण जनताने ख्यालमां आववी मुश्केल छे.....साधकने एक विकल्पथी
जे पुण्य बंधाय ए पुण्य पण जगतने विस्मय उपजावे छे, तो साधकभावना महिमानी
शी वात! जगतने आश्चर्य पमाडे एवा ए पुण्यना भोगवटानी रुचि धर्मात्माने रूंवाडेय
नथी. आ तो वीतरागनो मार्ग छे, वीरनो मार्ग छे.
एवो कायर जीव, वीतरागताना वीरमार्गने साधी शकतो नथी. जे चैतन्यमां रागनो
एक अंश पण नथी एवा चैतन्यने साधवो ते तो शूरानुं काम छे. हरिनो मार्ग एटले
चैतन्यनी पवित्रतानो मार्ग, ए पुण्यथी तो क्यांय पार छे, रागनो एमां प्रवेश नथी,
रागनो के पुण्यफळनो भोगवटो एमां नथी. अहा, आवो वीतरागमार्ग साधवो–ए तो
वीरना काम छे. रागना रसमां रोकाई जाय–ए वीरनुं काम नथी, ए तो कायरनुं काम
छे. वीरनुं काम तो ए छे के रागथी पार थईने चिदानंदस्वभावने अनुभवमां ल्ये ने
मोक्षमार्गने साधे. रागना बंधनमां बंधाई रहे तेने वीर केम कहेवाय? वीर तो तेने
कहेवाय के जे रागनां बंधन तोडी नांखे.
आम पवित्रता ने पुण्य बंनेनी संधि–छतां पवित्रतानो भोगवटो धर्मीना अंतरमां
समाय छे, ने पुण्योनो भोगवटो धर्मीना अंतरथी बाह्य छे,–एनो भोगवटो धर्मीना
अनुभवमां नथी. वाह! जुओ आ बेसता वर्षनी अपूर्व वात!! अहा,
साधकभाव,....जेना एक अंशनोय एवो अचिंत्य महिमा के तीर्थंकरप्रकृतिनां पुण्य पण
जेने पहोंची न शके.