केम जोडाय?–के बहारथी विरक्त थाय तो.–आ बंने एक साथे छे; एकनी अस्ति त्यां
बीजानी नास्ति. स्वभावनी प्रीति जागी त्यां भव–तन–भोगथी विरक्ति थई. जगतथी
उदास थई, चैतन्यनी प्रीति करीने तेने ध्यावतां कोई परमानंदनो अनुभव थाय छे ने
तुरत संसारनी विषवेल तूटी जाय छे. स्वभावमां ताकात छे के विकारना वंशने निर्वंश
अहा, तीर्थंकर जेवा पण भव–तन–भोगने अनित्य विचारी, क्षणमां छोडीने
ने एकाकी थई, असंग थई, वनमां चैतन्यध्यानमां मग्न थया. माटे हे जीव! भव–
तन–भोगथी तुं विरक्त था...ने चैतन्यस्वरूपने ध्याव.–ए ज सुखना अनुभवनो उपाय
छे.
परमाणुनो पूंज छे, ने आत्मा तो अनंत गुणोनो पूंज परमात्मा छे.–आ रीते आत्मा
देहथी अत्यंत भिन्न छे. कोई कहे के अमने देह वगरनो आत्मा देखाडो? तो कहे छे के
भाई, अत्यारे ज देह वगरनो आत्मा अंतरमां बिराजी रह्यो छे, पण देखवा माटे तुं
तारी आंख ऊघाड त्यारे ने? सूर्य झळहळतो ऊग्यो पण आंधळो क््यांथी देखे? तेम
आ देह ज्यां छे त्यां ज आनंदमूर्ति आत्मा बिराजी रह्यो छे, पण ध्यान वगर ते
देखातो नथी. भाई, तारी ध्यानरूपी आंख ऊघाड त्यां तने भगवान देखाशे द्रष्टि राखे
शरीर उपर अने कहे के आत्मा देखातो नथी;–पण क््यांथी देखाय? आत्मा तरफ नजर
आदरणीय परमात्मा तारामां ज एवो तने देखाशे; बहार जाये ते नहि देखाय.
पंचपरमेष्ठीपद प्रगटी जाय छे. परमेष्ठीपदना भंडार चैतन्यमूडीमां भर्या छे, तेनो
ख्याल आवे तो तेनो महिमा आवे ने तेमां एकाग्रता थाय...एटले आनंदनुं वेदन