Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 29

background image
: पोष : : ७ :
केम जोडाय?–के बहारथी विरक्त थाय तो.–आ बंने एक साथे छे; एकनी अस्ति त्यां
बीजानी नास्ति. स्वभावनी प्रीति जागी त्यां भव–तन–भोगथी विरक्ति थई. जगतथी
उदास थई, चैतन्यनी प्रीति करीने तेने ध्यावतां कोई परमानंदनो अनुभव थाय छे ने
तुरत संसारनी विषवेल तूटी जाय छे. स्वभावमां ताकात छे के विकारना वंशने निर्वंश
करी नांखे.
भव–भोग–तन–वैराग्य धार...
“भव तन भोग अनित्य विचारा...ईम मन धार तपे तप धारा.”
अहा, तीर्थंकर जेवा पण भव–तन–भोगने अनित्य विचारी, क्षणमां छोडीने
चैतन्य स्वरूपने साधवा वनमां संचर्या. तीर्थंकरो पण भवथी डरीने एनाथी दूर भाग्या
ने एकाकी थई, असंग थई, वनमां चैतन्यध्यानमां मग्न थया. माटे हे जीव! भव–
तन–भोगथी तुं विरक्त था...ने चैतन्यस्वरूपने ध्याव.–ए ज सुखना अनुभवनो उपाय
छे.
आंख उघाड...तने भगवान देखाशे
आ शरीरने तो ‘भवमूर्ति’ कह्युं छे, ए तो भवनी मूर्ति छे ने भगवान आत्मा
मोक्षनुं धाम छे. शरीर तो अशुचीधाम छे ने आत्मा पवित्रधाम छे. शरीर तो
परमाणुनो पूंज छे, ने आत्मा तो अनंत गुणोनो पूंज परमात्मा छे.–आ रीते आत्मा
देहथी अत्यंत भिन्न छे. कोई कहे के अमने देह वगरनो आत्मा देखाडो? तो कहे छे के
भाई, अत्यारे ज देह वगरनो आत्मा अंतरमां बिराजी रह्यो छे, पण देखवा माटे तुं
तारी आंख ऊघाड त्यारे ने? सूर्य झळहळतो ऊग्यो पण आंधळो क््यांथी देखे? तेम
आ देह ज्यां छे त्यां ज आनंदमूर्ति आत्मा बिराजी रह्यो छे, पण ध्यान वगर ते
देखातो नथी. भाई, तारी ध्यानरूपी आंख ऊघाड त्यां तने भगवान देखाशे द्रष्टि राखे
शरीर उपर अने कहे के आत्मा देखातो नथी;–पण क््यांथी देखाय? आत्मा तरफ नजर
करे तो देखाय ने? एक वार बहारथी नजर फेरवीने अंतरमां नजर कर तो परम
आदरणीय परमात्मा तारामां ज एवो तने देखाशे; बहार जाये ते नहि देखाय.
आराध्य देवनो अगाध महिमा
अरे, चैतन्य द्रव्य...तेना अगाध महिमानी जीवोने खबर नथी. महा पवित्र
अने आराधवा योग्य एवो आत्मदेव पोते ज छे. आत्मदेवनी आराधना करतां
पंचपरमेष्ठीपद प्रगटी जाय छे. परमेष्ठीपदना भंडार चैतन्यमूडीमां भर्या छे, तेनो
ख्याल आवे तो तेनो महिमा आवे ने तेमां एकाग्रता थाय...एटले आनंदनुं वेदन
प्रगटे.