Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 11 of 29

background image
: ८ : : पोष :
चैतन्यनी रुचिमां मोक्षसुखनां बीजडां पड्यां छे.
विकारनी रुचिमां अनंत भवनां बीजडां पड्यां छे.
आराध्य एवा आत्मदेवनी आराधना करतां आत्मा पोते आराध्य–परमात्मा
बनी जाय छे. आम जाणीने हे भाई! शुद्धभाव वडे आत्मदेवनी आराधना कर.
देह अने आत्मा
अरे, देहथी भिन्न आ चैतन्यदेव, ते देहने अडतोय नथी. पोताना चैतन्यदेवनी
आराधना छोडीने, जड देहमां मूर्छाई गयो तेथी नवा नवा देह धारण करी करीने
संसारमां रखडयो. छतां ते देहथी अलिप्त ज रह्यो छे; पोताना स्वरूपने कदी छोडयुं नथी.
स्वानुभूति
अनादिथी जीवने जे विकारनुं–आकुळतानुं–दुःखनुं ज वेदन हतुं; तेनाथी भिन्न
थईने, आत्मानी स्वानुभूतिथी ज्यारे आनंदनुं–निराकुळशांतिनुं वेदन थयुं त्यारे
सम्यग्दर्शन थयुं; त्यारे पहेलुं गुणस्थान छोडीने जीव चोथा गुणस्थाने आव्यो, ने त्यारे
ज धर्मनी ने मोक्षमार्गनी शरूआत थई.
कायारूपी कादवमां अलिप्त चैतन्यकमळ
स्वानुभूतिमां तो आत्मा रागनेय स्पर्शतो नथी, आनंदने ज स्पर्शे छे–
अनुभवे छे; अहा; चैतन्यभाव रागने पण नथी स्पर्शतो, त्यां जडशरीरने केम स्पर्शे?
त्रणकाळमां अमूर्तआत्मा मूर्तशरीरने कदी स्पर्श्यो नथी, कदी एकमेक थयो नथी. आत्मा
वसे छे क््यां? के देहमां; पण निश्चयथी पोताना चैतन्यशरीरमां रहेनारो आ आत्मा
देहने अडयो नथी, तेम ज देहनां रजकणो आत्माने अडयां नथी. अस्पर्शी आत्माने जड
केम स्पर्शे? जेम कमळपत्र क््यां रह्युं छे? के पाणीमां; अने छतां ते कमळपत्र पाणीने
अडयुं नथी, पाणीथी ते अलिप्त ज छे, तेम चैतन्यकमळ ते कायारूपी कादवनी वच्चे
रह्युं छतां ते कायारूपी कादवथी लेपायेलुं नथी. जड कायानो एक अंश पण चैतन्यमां
क््यांय प्रवेश्यो नथी. अहा, केटली स्पष्ट भिन्नता? आवी भिन्नता कोण देखे? के जे
जीव संयोगद्रष्टिना चश्मा उतारी नांखीने, असंयोगी स्वभावनी द्रष्टिथी देखे तेने
पोताना अंतरमां चैतन्यतत्त्व देहथी भिन्न विलसतुं देखाय छे.
आनंदनी स्फुरणा
लोकाग्रे सिद्धभगवान जेम शरीर वगरना छे तेम तारो आत्मा पण हे जीव!
शरीर वगरनो ज छे. ‘शरीरनो जुदो’ एटले शरीर वगरनो;–आम जाणीने हे जीव!