Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १० : : पोष :
स्वसंवेदनज्ञानी अंतरात्माना अलौकिक वीतरागी महिमानुं
आमां सुंदर वर्णन छे. अहा, विलक्षण धर्मात्माने स्वसंवेदनमां
आनंदनी धारा उल्लसे छे. आत्मा पोते राग वगरनो आनंदस्वभावी
छे, तेथी तेनुं संवेदन पण ते ज जातनुं छे. परमात्मानी जात पोतामां
प्रगट कर्या विना परमात्मानुं खरूं स्वरूप जाणी शकाय नहि.
स्वसंवेदनना बळथी ज्ञानी पोताना चैतन्यभावमां बाह्यभावोने
जराय प्रवेशवा देता नथी.–आवुं स्वसंवेदन ते धर्म छे, ते मोक्षमार्ग छे,
तेमां शांति छे, तेमां परमआनंद छे. स्वसंवेदन कहो के शुद्धात्मानी
अनुभूति कहो, तेने संतोए समस्त जैनशासननो सार कह्यो छे. हे
जीव! तेमां ज तारा परिणाम लगाव.
(परमात्म–प्रकाशना प्रवचनमांथी)
जेने संसारदुःखथी छूटवानी ने मोक्षसुख प्राप्त करवानी अभिलाषा छे एवा
(भट्ट प्रभाकर जेवा) शिष्ये विनयथी पूछयुं छे के हे स्वामी! मने एवुं परमात्मस्वरूप
कृपा करीने बतावो के जेने जाणवाथी मारुं अनादिनुं आ दुःख नाश थाय ने मने परम
आनंदनी प्राप्ति थाय. तेना उत्तरमां श्रीगुरु तेने परमअनुग्रहथी–प्रसन्नताथी
परमात्मस्वरूप समजावे छे.
हे वत्स! बहिरात्मा, अंतरात्मा ने परमात्मा–एम त्रिविध आत्माने जाणीने तुं
शीघ्र मूढतारूप बहिरात्मपणाने छोड, ने अंतरात्मा थईने परमात्माने ध्याव. आत्माना
परमस्वभावने स्वसंवेदनज्ञानथी जाणतां अंतरात्मपणुं थाय छे केवळज्ञानथी भरेलो
एवो जे परमात्मस्वभाव ते वीतरागीस्वसंवेदनज्ञानथी जणाय छे.
स्वसंवेदनरूप आत्मज्ञानने ‘वीतराग’ केम कह्युं? केमके ज्ञानमां बाह्य
ईन्द्रियविषयोनुं जे संवेदन छे ते तो रागवाळुं छे, ने आ अंतर्मुख थईने आत्माने
अनुभवनारुं ज्ञान तो रागना अभावरूप छे तेथी तेने ‘वीतराग’ विशेषण योग्य ज
छे. चोथा गुणस्थाने अविरत सम्यग्द्रष्टिनुं जे स्वसंवेदनज्ञान छे ते पण राग वगरनुं
वीतराग छे. चोथा गुणस्थाने राग तो होय छे ने?–तो कहे छे के स्वसंवेदनज्ञानमां
रागनो अभाव छे. स्वसन्मुख थयेला ज्ञानमां रागनुं वेदन नथी, एमां तो
वीतरागीआनंदनुं ज वेदन छे.