उपादेय छे. जेवा सिद्ध तेवो तुं; सिद्धसद्रश तारो शुद्धात्मा ज तारे ध्याववा योग्य छे.
–ए ज शास्त्रनो सार छे.
लक्ष थवाने तेहनो, कह्यां शास्त्र सुखदाई.
ज्ञानथी–दर्शनथी–सुखथी ने प्रभुताथी परिपूर्ण छो. तेमां ज अवलोकन कर. जेम गोळ
कोने कहेवाय? के गळपणनो पिंड ते गोळ; तेम आत्मा कोने कहेवो? के ज्ञान आनंदनो
पिंड ते आत्मा; आवा आत्माने ज ध्येय करवो एम उपदेश छे. बधाय महापुरुषो
आवा निज आत्माने ध्येय करी करीने ज महान थया छे, तुं पण स्वसंवेदनमां तेने ज
परम आनंद तने अनुभवमां आवशे.
श्री जिनभगवंतोए कहेलो
जन्म–जरा–मरणना चक्ररूप भयानक
संसार रोग मटाडवा माटेनी ए अचूक
औषधि छे, अने मोक्षरूप परिपूर्ण
स्वास्थ्य) ने देनार छे. ए रत्नत्रय परम
पवित्र छे, कल्याणकारी छे, तीर्थरूप छे,
मंगळरूप छे ने मोक्षनो सीधो मार्ग छे.