Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : : पोष :
* अरे, जेओ संसारना मात्र पापकार्योमां ज सहायक थाय छे, अने पवित्र
धर्मकार्योमां विघ्न नाखे छे, एना जेवो शत्रु बीजो कोण छे?
* मारा अंतरमां अत्यारे शुद्धोपयोगनी प्रेरणा जागी छे, मारुं मन सर्वत्र
विरक्त थयुं छे.
* दीक्षा माटे तैयार थयेल वरांगराज पोताना पुत्रोने अंतिम हितशिखामण
देतां कहे छे के, लौकिक योग्यता अने सज्जनता उपरांत, भगवान अर्हंतदेव द्वारा
उपदिष्ट रत्नत्रयधर्मने कदी न भूलो. शास्त्रज्ञनी संगति करो. रत्नत्रयथी भूषित
सज्जनोनो आदर अने समागम करो. मुनि–आर्यिका–श्रावक–श्राविका ए चतुर्विध
संघनी ज्यारे ज्यारे अवसर मळे त्यारे आदरपूर्वक वंदना करो...अने रत्नत्रयना
सेवनमां सदा तत्पर रहो.
* ए रीते वरांगकुमार वैराग्यथी ज्यारे वन तरफ चाल्या त्यारे तेने देखनारा
केटलाक जीवोए तो तेनी प्रशंसा करी, अने बीजा जीवो–के जेमनो आत्मा मर्यो न हतो,
–जेमनुं आत्मबळ दीन थयुं न हतुं–जेओ आत्महितमां जागृत हता तेओ तो वरांग
साथे ज चाली नीकळ्‌या....‘आ राजकुमार आत्महित साधवा वनमां जशे ने अमे शुं
अहीं हाथ जोडीने बेसी रहेशुं?–एम कहीने तेओ पण तेनी साथे ज वैराग्यथी वनमां
सीधाव्या.
* भयभीत काचबो पोताना सर्वांगने पोतामां ज संकोची ल्ये छे तेम संसारथी
भयभीत वरांग मुनिराजे पोतानो उपयोग समस्त ईन्द्रियोथी संकोचीने पोतामां ज
एकाग्र कर्यो हतो. जेनो उपयोग पोतामां ज लीन छे तेने आ जगतमां भय नथी.
जिनमार्ग अत्यन्त सरळ छे
सर्वज्ञ जिनेन्द्रोना मार्गनुं अनुसरण करवाथी
जीवनो उद्धार थाय छे, ने ते जन्म–मरणरहित अमर पद
पामे छे. अने आ कांई कलिष्ट मार्ग नथी परंतु
स्वभाविक होवाने कारणे विवेकी पुरुषोने माटे ते अत्यंत
सरल छे. हे जीव! अंतरात्मावडे तेनुं ग्रहण करीने तुं
सन्मार्गी था.