Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : : १७ :
आ मासनी विविध वानगी
(चर्चा अने प्रवचनो उपरथी: मागसर मास)
आ चैतन्यहीरो ज्ञानप्रकाशथी चमकतो, अनंत गुणना निर्मळ किरणोथी
झगमगतो छे. आ चैतन्यमां भरेला अगाध चमत्कारनी जगतने खबर नथी. अहा,
चैतन्य हीरो...जेमां एकाग्र थतां एक क्षणमां केवळज्ञाननी अचिंत्यविभूति प्रगटे. अरे
जीव! आवो चमत्कारी चैतन्यहीरो तारामां छे ते प्राप्त करवानो अतिदुर्लभ सुअवसर
तने मळ्‌यो छे तो काळनी एक क्षण पण व्यर्थ गुमाव्या विना तारा चैतन्यहीराने देख.
आ चैतन्यहीरा पासे जगतमां कोईनी महत्ता नथी.
*
सन्तो ज जाणे छे
आत्मस्वरूपनो अचिंत्य महिमा आत्मानुभवी संतो ज जाणे छे. तेमना
अंतरमां निर्विकल्प ध्यानमां ते आत्मा आनंदसहित स्फूरायमान थाय छे. आवो ज
आत्मा उपादेय छे. ते ज ज्ञानमां श्रद्धामां अनुभवमां लेवा जेवो छे. पोताना आवा
परमात्मतत्त्वने सन्तो ज जाणे छे.
*
चैतन्यमां विकल्पनो प्रवेश नथी
विकल्पवडे निर्विकल्प–चैतन्यना अनुभव तरफ जवाशे–एम जे माने छे ते
विकल्पने अने निर्विकल्पतत्त्वने बंनेने एक माने छे, तेने विकल्पनो ज अनुभव रहेशे
पण विकल्पथी पार एवा निर्विकल्प चैतन्यनो अनुभव तेने नहि थाय. विकल्पने
साधन माने ते विकल्पनुं अवलंबन छोडीने आघो जाय नहि, एटले विकल्पथी पार
एवुं चैतन्यतत्त्व तेना अनुभवमां आवे नहि. भाई, चैतन्यतत्त्व अने विकल्प–ए
बंनेनी जात ज जुदी छे; चैतन्यमांथी विकल्पनी उत्पत्ति थती नथी, अने विकल्पनो
प्रवेश चैतन्यमां थतो नथी. आम अत्यंत भिन्नताने ऊंडेथी विचारीने तुं चैतन्यनी ज
भावनामां तत्पर रहे.