Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : : पोष :
चैतन्यमां जेम जेम नीकटता थती जाय छे तेम तेम विकल्पो शमता जाय छे.
चैतन्यमां लीन थतां विकल्पो अलोप थई जाय छे. आ रीते चैतन्यमां विकल्प नथी,
एवा भिन्न चैतन्यने तुं तीव्र लगनीथी चिंतव.
*
स्वरूपनी वार्ता
हे जीव! शुद्धात्माना अनुभवनी जे वात सन्तो महिमापूर्वक कहे छे ते तारा
स्वरूपनी ज वार्ता छे, बीजानी वात नथी. तारा स्वरूपनो रसीयो थईने तुं अनुभव
माटे अभ्यास कर, एम करवाथी तने तारा स्वरूपना आनंदनो अनुभव थशे. पोतानुं
स्वरूप पोताने अप्राप्त केम होय? जो जगतनी बीजा झंझट छोडीने, एक आत्मानो ज
अर्थी थईने सततपणे अंतरंग अभ्यास कर तो तारुं स्वरूप तने प्रसिद्ध अनुभवमां
आवशे...जेना अनुभवथी तारुं जीवन सर्व प्रकारे उज्जवळ अने आनंदमय बनशे.
*
स्वानुभूतिनुं सुख
अनादिकाळथी स्वरूपने भूलीने, सम्यग्दर्शन वगर संसारमां रखडतो जीव
समस्त परभावोने फरी फरी भोगवी चूकयो छे, संसारसंबंधी बधाय दुःख–सुख ए
भोगवी चूकयो छे, पोताना स्वरूपनुं वास्तविकसुख एक क्षण मात्र तेणे भोगव्युं
नथी...के जे सुखनी पासे जगतना बधा ईन्द्रियसुखो अत्यंत नीरस छे. ईन्द्रियसुखोथी
आत्मिकसुखनी जात ज जुदी छे,–जेम ईन्द्रियो अने आत्मा जुदा छे तेम.–हे जीव!
ज्ञानस्वभावना अवलंबनथी सम्यग्दर्शननो प्रयत्न करीने स्वानुभूतिमां तारा आ
सुखने तुं भोगव.
*
सुखनुं ज्ञान ने सुखनुं वेदन
केवळज्ञानी भगवान पूर्ण अतीन्द्रिय सुखरूप थया छे, ने एवुं ज सुख
अनंतकाळ सुधी रहेशे. आगामी काळना समय समयना परिणामथी जे सुख थशे ते
केवळज्ञाने अत्यारे जाणी लीधुं छे, छतां समये समये नवा नवा सुखनो भोगवटो होय
छे. केमके भावि परिणामनुं सुख ते ज्यारे ते प्रगटे त्यारे अनुभवाशे. बधाय
परिणामना सुखनुं ज्ञान युगपत थई गयुं छे, पण सुखनो भोगवटो तो एकेक समयना
परिणामनो भिन्न भिन्न छे. बधाय काळना परिणामनुं सुख एक साथे वेदाई जतुं नथी,
पण ज्ञानमां एक साथे आवी जाय छे.