मोक्षपंथमां तारा आत्माने तुं स्थाप; तेनुं ज ध्यान अने अनुभवन कर, ने तेमां ज तुं
विहर. आ सिवाय बीजामां न विहर.
द्रव्यमां ज पोताने स्थाप्यो हतो. हवे कहे छे के तेनाथी भेदज्ञानवडे तारा आत्माने पाछो
वाळ, ने स्वद्रव्यना आश्रये ज मोक्षमार्ग जाणीने तेमां ज आत्माने स्थाप.
सम्यग्ज्ञान वडे अनादिनी भूल तत्क्षण भांगी जाय छे.–ताराथी आ थई शके छे तेथी
आचार्य कहे छे के हे जीव! तारी प्रज्ञाना गुणवडे ज तारा आत्माने रागद्वेषादि पर
भावोथी पाछो वाळ ने रत्नत्रयमां निश्चलपणे जोड. तारा चैतन्यनां वहेणने विकारमां
न वाळ, तारा चैतन्यवहेणने तारा स्वभावमां ज वाळ.–आ मोक्षने साधवानी कळा छे.
महा दुर्लभ छे, ते ज्ञाननी प्राप्ति थवानो
सुअवसर आव्यो त्यारे तेनी प्राप्ति, रक्षा अने
वृद्धि माटे जीवे कदी प्रमाद करवो न जोईए,
सौथी दुर्लभ एवी अमूल्य बोधिनी प्राप्तिनो आ
अवसर आव्यो छे.