Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : : १९:
मोक्षमार्गमां विहर
शुद्ध आत्माना आश्रये जे निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते ज मोक्षमार्ग छे,
आवो मोक्षमार्ग बतावीने आचार्यदेव भव्य जीवने संबोधन करे छे के हे भव्य! आवा
मोक्षपंथमां तारा आत्माने तुं स्थाप; तेनुं ज ध्यान अने अनुभवन कर, ने तेमां ज तुं
विहर. आ सिवाय बीजामां न विहर.
ज्यां एकता त्यां लीनता
जेमां जेने एकत्वबुद्धि होय तेमां ते पोताने स्थापे छे; अनादिथी मांडीने
अज्ञानीए परभावमां एकत्वबुद्धिथी, ‘आ हुं, आ मारां’–एम परभावमां ने पर
द्रव्यमां ज पोताने स्थाप्यो हतो. हवे कहे छे के तेनाथी भेदज्ञानवडे तारा आत्माने पाछो
वाळ, ने स्वद्रव्यना आश्रये ज मोक्षमार्ग जाणीने तेमां ज आत्माने स्थाप.
चैतन्यनां वहेण
हेव जीव! भूल तें करी छे, अने ते भूलने भांगवानुं सामर्थ्य पण तारामां ज
भर्युं छे. अनादिथी भूल करी माटे हवे ते भांगी न शकाय–एवुं नथी. एक समयना
सम्यग्ज्ञान वडे अनादिनी भूल तत्क्षण भांगी जाय छे.–ताराथी आ थई शके छे तेथी
आचार्य कहे छे के हे जीव! तारी प्रज्ञाना गुणवडे ज तारा आत्माने रागद्वेषादि पर
भावोथी पाछो वाळ ने रत्नत्रयमां निश्चलपणे जोड. तारा चैतन्यनां वहेणने विकारमां
न वाळ, तारा चैतन्यवहेणने तारा स्वभावमां ज वाळ.–आ मोक्षने साधवानी कळा छे.
जन्ममरणवडे आखा लोकमां भमी चुकेला
आ जीवने बधुंय सुलभ छे पण एक यथार्थज्ञान
महा दुर्लभ छे, ते ज्ञाननी प्राप्ति थवानो
सुअवसर आव्यो त्यारे तेनी प्राप्ति, रक्षा अने
वृद्धि माटे जीवे कदी प्रमाद करवो न जोईए,
सौथी दुर्लभ एवी अमूल्य बोधिनी प्राप्तिनो आ
अवसर आव्यो छे.
“दुर्लभ है संसारमें....
एक यथारथ ज्ञान”