Atmadharma magazine - Ank 255
(Year 22 - Vir Nirvana Samvat 2491, A.D. 1965)
(Devanagari transliteration).

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: २० : : पोष :
अतीन्द्रिय आनंदनी
प्राप्ति माटे संतोनो उपदेश
अरे जीव! एक वार तारा आत्मानी खरी
किंमत समजीने तारामां अंतर्मुख था. तने
जगतना पदार्थो सारा लागे छे परंतु सौथी सारो
ते तारो आत्मा ज छे.–ए ज सारो लगाड....एने
ज सारभूत समज. जे आनंदने तुं बहारमां शोधी
रह्यो छे ते तने तारामां ज मळशे. मारा शुद्ध
आत्मा सिवाय बीजुं कांई आ जगतमां मारे
उपादेय नथी–एम आत्माने ज उपादेय करीने एक
वार स्वानुभूति वडे तेमां प्रवेश कर तो तने परम
आनंदनो अनुभव थशे.
जन्ममरणरहित आत्मा पोताने भूलीने संसारमां जन्ममरण करी रह्यो छे, शुद्ध
आत्मस्वभाव तो जन्ममरण वगरनो छे. ते नथी तो कर्मो अनुसार उपजतो–मरतो, के
पोते नथी कर्मोने उपजावतो; ते तो पोताना निर्मळ ज्ञानादिभावोना उत्पादव्ययरूपे
परिणमे छे. संयोगथी ने संयोगीभावोथी (एटले परथी ने परभावथी) तो शुद्ध
आत्मा त्रिकाळ जुदो छे, एने कोई संयोगनो हर्ष नथी, शोक नथी, हसवापणुं नथी के
खेदखिन्न थवापणुं नथी; ए तो परथी परम उदासीन छे. उदासीनतामां वीतरागता छे,
आनंद छे, ज्ञान छे; पण उदासीनतामां राग–द्वेष नथी, शोक–हर्ष नथी. रागना
आसनथी ऊंचुं (जुदुं) चैतन्यआसन छे, तेमां जे बिराजमान थयो ते ज खरो
उदासीन छे. आवो ज आत्मानो स्वभाव छे.
अरे जीव! एक वार तारा आवा स्वभावनुं खरूं माप तो कर. तुं चैतन्यपिंड,
सर्वज्ञताना सामर्थ्यथी भरपुर, एवा महिमावंत निजस्वभावने भूलीने रागद्वेष जेवी
तुच्छवृत्तिमां रोकाई गयो. ने देहादिना ममत्वने लीधे देह धारण करी करीने चार
गतिमां जन्ममरण करी रह्यो छे. अशरीरी चैतन्यने आवा देह धारण करवा पडे ते
शरम छे. अरे, राग साथे य जेने कारण कार्यपणुं परमार्थे नथी, तेने वळी आ जड देह
साथे संबंध शा? परथी उदासीन थईने आवा तारा आत्मस्वरूपने ध्येय बनावीने
अनुभवमां ले तो सम्यग्दर्शन थाय.